
Aptavani Shreni-5: आप्तवाणी श्रेणी -५
Religion, Spiritualité
Audio avec voix de synthèse, Braille automatisé
Résumé
व्यवस्थित शक्ति के द्वारा हमारे जीवन का समस्त सांसारिक व्यवहार डिस्चार्ज हो रहा है। हमारी पाँचों इन्द्रियाँ कर्म के अधीन हैं। कर्मों के बंधन का कारण क्या है? यह धारणा की कि ‘मैं चंदुलाल हूँ’ वह कर्म बंधन का मूल… कारण है। सिर्फ सच (तथ्य) जानने की आवश्यकता है। यह एक विज्ञान है। इस पुस्तक में परम पूज्य दादाश्री ने पाँच ज्ञान इन्द्रियों तथा उनके कार्यों की प्रणाली के बारे में बताया है। मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार, यह सब इन्द्रियों के अलग-अलग कार्य हैं। फिर अपना कार्य करने में कौन असफल रहा? ‘स्व’ रहा। ‘स्व’ का कार्य है जानना, देखना और हमेंशा आनंदमय स्थिति में रहना। हर इन्सान ज़िंदगी के बहाव के साथ आगे बह रहा है। यहाँ कोई भी कर्ता नहीं है। अगर कोई स्वतंत्र कर्ता होता तो वह हमेंशा बंधन में ही रहता। जो नैमित्तिक कर्ता है वह कभी भी बंधन में नहीं रहता। संसार प्राकृतिक परिस्थितियों के प्रभाव से उत्त्पन्न परिणाम पर ही चलता है। ऐसी परिस्थिति में ‘मैं कर्ता हूँ’ की गलत धारणा की उत्पत्ति होती है। इस कर्तापन की गलत धारणा की वजह से अगले जन्म के बीज बोए जाते हैं। इस संकलन में परम पूज्य दादाश्री ने कर्म के विज्ञान, कर्तापन, पाँच इन्द्रियों, अहंकार, मनुष्यों का स्वभाव, ज्ञानियों के प्रति विनय, पापों का प्रतिक्रमण, प्रायश्चित इत्यादि विषयों के बारे में बताया है। यह समझ साधकों को स्वयं के बारे में व संसार में दूसरों से कैसे शांतिपूर्वक व्यवहार करें, इस बारे में मदद करती है।