Chandi Charitra: चण्डी-चरित्र
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Résumé
“वरदायिनी चण्डी-चरित्र” (गुरु गोविन्द सिंह विरचित) वास्वत में भक्ति-भावों को सशक्त एवं प्रखर बनाने की विलक्षण प्रेरणा है। भक्ति की अन्य रचनाएँ जिनमें विनय, प्रेम, वात्सल्य अथवा दास्य आदि भाव प्रबल रहते हैं, उनसे यह रचना नितान्त भिन्न है। इस… रचना से पाठकों-भक्तों के भीतर उत्साह, उमंग एवं पराक्रम की भावना का संचार भी होता है। शक्ति-स्तुति की भावना से जुड़कर हम अपने भीतर के कालुष्य का निवारण करते हैं। मन की परतें उज्ज्वल हो जाती हैं। वीरता और भक्ति भावना का यह अद्भुत संगम ही इस रचना की विशिष्टिता है। शक्ति की उपासना, वास्तव में विश्वास की, शिवत्व की तथा सत्य-भावना की उपासना है। अपने भीतर की शक्ति को हम सब जगाएँ, आज यह आवश्यक भी है। न्याय और धर्म की प्रतिष्ठा के लिए, सहनशीलता, क्षमा और दया की निरंतर पूजा के लिए यह आवश्यक है कि हम 'शक्तिमान' बनें। गुरु गोविन्द सिंह का यही स्वप्न है जो ‘चण्डी-चरित्र' के माध्यम से वे देखते हैं। निष्क्रीय समाज को सक्रिय बनाने एवं अकर्मण्य को कर्म का सूत्र प्रदान करने की यह नित्य-कोशिश है।