Hind Swaraj
Summary
हिंसा की विचारधारा को हमे साधारणतया प्रतीत होता है उससे अधिक अनुमोदन प्राप्य है| हिंसा के हिमायती दो वर्ग में विभाजित हैं| अल्प और अल्पतम होता एक समुदाय हिंसा में मानता है और उस पर आचरण करने को तत्पर होता… है| दूसरा एक विशाल वर्ग हमेशा से रहा है जो हिंसा में आस्था तो रखता है, पर, हाल के आंदोलन की निष्फलता के कटु अनुभव के पश्चात्, उनकी यह आस्था आचरण में परिवर्तित नहीं होती| कार्यसिद्धि के लिए ज़बरदस्ती सिवा दूसरा मार्ग उनके पासे नहीं होता| हिंसा के प्रति उनका दृढ इतबार उन्हें अन्य किसी काम करने से या भोग देने के रास्ते पर चलने से रोकता है| यह दोनों ही बातें भारी आपत्तिपूर्ण हैं| जब तक हम हिंसा के तमाम स्वरूपों को तिलांजलि नहीं दे देते और अहिंसक परिबलों को अपना चालकबल नहीं बनने देते तब तक अपनी यह मातृभूमि के नवनिर्माण की आशा मिथ्या है| हिंसाचार के नकार की आवश्यकता जितनी आज है ईतनी पहले कभी न थी| ईस ध्येयसिद्धि के लिए गांधीजी के यह विख्यात पुस्तक का प्रकाशन और उसके विशाल प्रचार से बहेतर मार्ग और क्या हो सकता हैे? [हिंद स्वराज] च. राजगोपालाचार सत्याग्रह सभा, मद्रास, 6-6-’19