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The Analyst
By Molly Peacock. 2017
When a psychoanalyst became a painter after surviving a stroke, her longtime patient, distinguished and beloved poet Molly Peacock, took…
up a unique task. The Analyst is a new, visceral, twenty-first century "in memoriam" of ambiguous loss in which Peacock brilliantly tells the story of a decades-long patient-therapist relationship that now reverses and continues to evolve. Peacock invigorates the notion of poetry as word-painting: A tapestry of images, from a red enameled steamer on a black stove to Tibetan monks funneling glowing sand into a painting, create the backdrop for her quest to define identity. From "In Our Unexpected Future":. . . for frocks outlast pillars. But feelingsoutlive frocks. The immaterial storms through,a force beyond years (a mere four since youwere nearly felled). It isn't what happened that lasts. Not art, either, but the savory core. What's felt.आधुनिक भारत का इतिहास यह पुस्तक इतिहास के उस काल का वर्णन प्रस्तुत करती है जिसे ब्रिटिश भारत के रूप…
में जाना जाता है। यह वर्णन मुख्य रूप से भारत में राष्ट्रवाद और उपनिवेशवाद पर मेरे शोध और इस काल पर प्रकाशित विभिन्न ग्रंथों पर आधारित है। पुरातन साम्राज्यवाद और राष्ट्रवाद के इतिहासलेखन की चुनौती के साथ पुस्तक ऐतिहासिक-राजनैतिक वर्णन से आगे बढ़कर इतिहास, राजनीति, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और अन्य संबंधित विषयों के पारस्परिक अंतर्संबंधों पर ध्यान केंद्रित करती है। पुस्तक में व्यापक सामाजिक बलों, आंदोलनों, संस्थानों और व्यक्तियों का अध्ययन इस उद्देश्य के साथ किया गया कि कुछ घटनाएं क्यों घटित हुई और इस तरह की घटनाओं के परिणामों का वर्णन कालक्रमानुसार किया गया है। पुस्तक में अठारहवीं सदी में भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों के आधार पर बताया गया है कि क्यों भारत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और बाद में ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया। इसमें भारत पर ब्रिटिश शासन के राजनैतिक, प्रशासनिक और आर्थिक प्रभावों का सविस्तर वर्णन शामिल है। अंतिम पांच अध्याय भारत में राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े हैं, जिनमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गठन से लेकर भारत द्वारा स्वतंत्रता की प्राप्ति का वर्णन है। राष्ट्रीय आंदोलन की नरमपंथी, गरमपंथी और क्रांतिकारी जैसी विभिन्न विचारधाराओं का विस्तृत विवेचन किया गया है।Poems That Do Not Sleep
By Hassan Al Nawwab. 2021
Hassan Al Nawwab is a former Iraqi soldier who came to Australia after the war with his family 20 years…
ago. With devastating simplicity, these imagistic poems speak of war and terror, of homesickness in exile, the blessings of peace and the pain of belonging. The collection is in two parts, ‘Tree Flying' and ‘Diaspora', and each poem is presented with its counterpart in Arabic on the opposite page, as translated from English by the poet himself.Vaani Vyvahaar Me (Sanxipt): वाणी व्यवहार मॅ
By Dada Bhagwan. 2016
‘वाणी,व्यवहार में’, यह पुस्तक में हमें वाणी से संबंधित कई सारे मौलिक सिद्धांतों की जानकारी प्राप्त होती है| वाणी मुख्यतः…
निर्जीव है, यह सिर्फ एक टेप रिकॉर्ड है, जिसकी पूरी रिकॉर्डिंग हमारे पिछले जन्मो में हुई है| वाणी, एक बहुत ही अमूल्य वस्तु है जिसकी कीमत समझना बहुत ज़रूरी है| हमारी वाणी ऐसी होनी चाहिए कि जिससे किसीको भी दुःख ना हो| दादाश्री इस किताब में हमें वाणी कि महत्वता, हमारे रोजिंदा जीवन में होने वाले व्यवहार को लक्ष में रखकर, बहुत सारे उदाहरणों के साथ बताते है जिससे हमें यह समझ में आता है कि हम हमारी वाणी को किस तरह कोमल और मधुर बना सकते है| जिस तरह किसी टेप को बजाने से पहले उसमें रिकॉर्डिंग करनी होती है उसी तरह हमारे मुँह से जो वाणी निकलती है वह सब पिछले जन्मो में की हुई रिकॉर्डिंग का ही परिणाम है| वाणी के सिद्धांतों को और अधिक गहराई में समझने के लिए यह किताब अवश्य पढ़े|Trimantra: त्रिमंत्र
By Dada Bhagwan. 2016
धर्म में तू-तू मैं-मैं से झगड़े होते हैं। इसे दूर करने के लिए यह निष्पक्षपाती त्रिमंत्र है। इस त्रिमंत्र का…
मूल अर्थ यदि समझे तो उनका किसी भी व्यक्ति या संप्रदाय या पंथ से कोई संबंध नहीं है। आत्मज्ञानी, केवलज्ञानी और निर्वाण प्राप्त करके मोक्षगति प्राप्त करनेवाले उच्च, जागृत आत्माओं को नमस्कार है। जिन्हें नमस्कार करके संसारी विघ्न दूर होते हैं, अडचनों में शांति रहती है और मोक्ष का लक्ष्य बैठना शुरू हो जाता है। आत्मज्ञानी परम पूज्य दादा भगवान ने निष्पक्षपाती त्रिमंत्र प्रदान किया है। इसे सुबह-शाम ५-५ बार उपयोगपूर्वक बोलने को कहा है। इससे सांसारिक कार्य शांतिपूर्वक संपन्न होते हैं। ज़्यादा अडचनों की स्थित में घंटा-घंटाभर बोलें तो सूली का घाव सुई से टल जाएगा। निष्पक्षपाती त्रिमंत्र का शब्दार्थ, भावार्थ और किस प्रकार यहाँ हितकारी हैं, इसका खुलासा दादाश्री ने इस पुस्तक मं दिया है।Takrav Taliye: टकराव टालिए
By Dada Bhagwan. 2016
दैनिक जीवन में टकराव का समाधान करने की जरूरत को सभी समझते हैं। हम टकराव करके अपना सबकुछ बिगाड़ लेते…
हैं। यह तो हमें बिल्कुल अनुकूल नहीं होता। सड़क पर लोग ट्राफिक़ के नियमों का सख्ती से पालन करते हैं। लोग अपनी मनमानी नहीं करते, क्योंकि मनमानी से तो टकराओगे और मर जाओगे। टकराने में जोखिम है। इसी प्रकार व्यावहारिक जीवन में भी टकराव टालना है। ऐसा करने से जीवन क्लेश रहित होगा और मोक्ष की प्राप्ति होगी। जीवन में क्लेश का कारण जीवन के नियमों की अधूरी समझ है। जीवन के नियमों की हमारी समझ में, मूलभूत कमियाँ हैं। जिस व्यक्ति से आप इन नियमों को समझें, उसे इन नियमों की घहरी समझ होनी चाहिए। इस पुस्तक से आप जान पाएँगे की टकराव क्यों होता है? टकराव के प्रकार क्या हैं? और टकराव कैसे टालें की जीवन क्लेश रहित हो जाए। इस पुस्तक का लक्ष्य आपके जीवन को शांति और उल्लास से भरना है, तथा मोक्ष मार्ग में आपके क़दमों को मज़बूत करना है।Vartaman Tirthankar Shree Simandhar Swami: वर्तमान तीर्थकर श्री सीमंधर स्वामी
By Dada Bhagwan. 2016
इस काल में इस क्षेत्र से सीधे मोक्ष पाना संभव नहीं है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया हैं। लेकिन लंबे…
अरसे से, महाविदेह क्षेत्र में श्री सीमंधर स्वामी के दर्शन से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुला ही हैं। लेकिन परम पूज्य दादाश्री उसी मार्ग से मुमुक्षुओं को मोक्ष पहुँचानें में निमित्त हैं और इसकी प्राप्ति का विश्वास, मुमुक्षुओं को निश्चय से होता ही है। इस काल में, इस क्षेत्र में वर्तमान तीर्थंकर नहीं हैं। लेकिन महाविदेह क्षेत्र में वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी विराजमान हैं। वे भरत क्षेत्र के मोक्षार्थी जीवों के लिए मोक्ष के परम निमित्त हैं। ज्ञानीपुरुष ने खुद उस मार्ग से प्राप्ति की और औरों को वह मार्ग दिखाया है। प्रत्यक्ष प्रकट तीर्थंकर की पहचान होना, उनके प्रति भक्ति जगाना और दिन-रात उनका अनुसंधान करके, अंत में, उनके प्रत्यक्ष दर्शन पाकर, केवलज्ञान को प्राप्त करना, यही मोक्ष की प्रथम और अंतिम पगडंडी है। ऐसा ज्ञानियों ने कहा हैं। श्री सीमंधर स्वामी की आराधना, जितनी ज़्यादा से ज़्यादा होगी, उतना उनके साथ अनुसंधान विशेष रहेगा। इससे उनके प्रति ऋणानुबंध प्रगाढ़ होगा। अंत में परम अवगाढ़ दशा तक पहुँचकर उनके चरणकमलों में ही स्थान प्राप्ति की मोहर लगती है।Seva Paropkar: सेवा परोपकार
By Dada Bhagwan. 2016
सेवा का मुख्य उद्देश्य है कि मन-वचन-काया से दूसरों की मदद करना| जो व्यक्ति खुद के आराम और सुविधाओं के…
आगे औरो की ज़रूरतों को रखता है वह जीवन में कभी भी दुखी नहीं होता| मनुष्य जीवन का ध्येय, दूसरों की सेवा करना ही होना चाहिए| परम पूज्य दादाभगवान ने यह लक्ष्य हमेशा अपने जीवन में सबसे ऊपर रखा कि, जो कोई भी व्यक्ति उन्हें मिले, उसे कभी भी निराश होकर जाना ना पड़े| दादाजी निरंतर यही खोज में रहते थे कि, किस प्रकार लोग अपने दुखों से मुक्त हो और मोक्ष मार्ग में आगे बढे| उन्होंने अपनी सुख सुबिधाओं की परवाह किये बगैर ज़्यादा से ज़्यादा लोगो का भला हो ऐसी ही इच्छा जीवनभर रखी| पूज्य दादाश्री का मानना था कि आत्म-साक्षात्कार, मोक्ष प्राप्त करने का आसान तरीका था पर जिसे वह नहीं मिलता हैं, उसने सेवा का मार्ग ही अपनाना चाहिए| किस प्रकार लोगो की सेवा कर सुख की प्राप्ति करे, यह विस्तृत रूप से जानने के लिए यह किताब ज़रूर पढ़े|Samaj Se Prapt Brahmacharya (Sanxipt): समज से प्राप्त ब्रह्मचर्य (संक्षिप्त)
By Dada Bhagwan. 2016
ब्रम्हचर्य व्रत, भगवान महावीर द्वारा दिये हुए ५ महाव्रतो का हिस्सा है| मोक्ष प्राप्त करने ब्रम्हचर्य व्रत का पालन करना…
चाहिए, यह समझ बहुत सारे लोगो में है पर विषय करना क्यों गलत है या उसमें से हम छुटकारा कैसे पा सकते है, यह सब कोई नहीं जानता| विषय यह हमारी पाँचो इन्द्रियों में से किसी भी इन्द्रिय को पसंद नहीं आता| आँखों को देखना अच्छा नहीं लगता, नाक को सूंघना पसंद नहीं, जीभ से चख ही नहीं सकते और ना ही हाथ से छू सकते है| पर फिर भी सच्चा ज्ञान नहीं होने के कारण लोग विषय में निरंतर लीन होते है क्योंकि उन्हें इसके जोख्मों के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है| अपने हक्क के साथी के साथ भी विषय करने में अनगिनत सूक्ष्म जीवों का नाश होता है और अनहक्क के विषय का नतीजा तो नरकगति है| इस पुस्तक द्वारा आपको ब्रम्हचर्य क्या है,इसके क्या फायदे है, ब्रम्हचर्य का पालन कैसे करे वगैरह प्रश्नों के जवाब मिलेंगे|Pati Patni ka Divya Vyavhar (Sanxipt): पति पत्नी का दिव्य व्यवहार (संक्षिप्त)
By Dada Bhagwan. 2016
पति और पत्नी यह दोनों एक ही गाड़ी के दो पहिये है जिसका साथ में चलना बहुत ही अनिवार्य है|…
हर घर में पति-पत्नी के बीच किसी ना किसी बात पर संघर्ष और मनमुटाव चलते ही रहता है जिसके कारण घर का वातावरण भी तनावपूर्ण हो जाता है| इसका प्रभाव घर में रहने वाले अन्य सदस्यों पर भी पड़ता है और खासकर बच्चे भी इससे बहुत ही प्रभावीत होते है| पूज्य दादा भगवान खुद भी विवाहित थे पर अपने सम्पूर्ण आयुष्यकाल में उनका अपनी पत्नी के साथ कभी भी किसी भी बात को लेकर विवाद खड़ा नहीं हुआ| अपनी किताब, ‘पति पत्नी का दिव्य व्यवहार’ में दादाजी हमें अपने विवाह जीवन को आदर्श किस तरह बनाये, इससे संबंधित बहुत सारी चाबियाँ देते है|अपने अनुभवों और ज्ञान के साथ, लोगो द्वारा पूछे गए प्रश्नों के जवाब में दादाजी ने बहुत सारी अच्छी बाते कही है, जिसका पालन करने से पति और पत्नी एक दूसरे के साथ सामजस्य के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार कर सकेंगे|Paiso Ka Vyvahaar (Sanxipt): पैसों का व्यवहार (संक्षिप्त)
By Dada Bhagwan. 2016
एक सुखी और अच्छा जीवन बिताने हेतु, पैसा हमारा जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है| पर क्या कभी आपने…
यह सोचा है कि, ‘ क्यों किसी के पास बहुत सारा पैसा होता है और किसी के पास बिल्कुल नहीं?’ परम पूज्य दादाजी का हमेशा से यही मानना था कि, पैसों के व्यवहार में नैतिकता बहुत ही ज़रूरी है| अपने अनुभवों के आधार पर और ज्ञान की मदद से वह पैसों के आवन-जावन, नफा-नुक्सान, लेन-देन आदि के बारे में बहुत ही विगतवार जानते थे| वह कहते थे कि मन की शान्ति और समाधान के लिए किसी भी व्यापार में सच्चाई और ईमानदारी के साथ नैतिक मूल्यों का होना भी बहुत ही ज़रूरी है| जिसके बिना भले ही आपके पास बुहत सारा धन हो पर अंदर से सदैव चिंता और व्याकुलता ही रहेगी| अपनी वाणी के द्वारा दादाजी ने हमें पैसों के मामले में खड़े होने वाले संघर्षों से कैसे मुक्त हो और किस प्रकार बिना किसी मनमुटाव के और ईमानदारी से, अपना पैसों से संबंधित व्यवहार पूरा करे इसका वर्णन किया है जो हम इस किताब में पढ़ सकते है|Paap Punya: पाप पुण्य
By Dada Bhagwan. 2016
पाप या पुण्य, जीवन में किये गए किसी भी कार्य का फल माना जाता है| इस पुस्तक में दादाश्री हमें…
बहुत ही गहराई से इन दोनों का मतलब समझाते हुए यह बताते है कि, कोई भी काम जिससे दूसरों को आनंद मिले और उनका भला हो, उससे पुण्य बंधता है और जिससे किसीको तकलीफ हो उससे पाप बंधता है| हमारे देश में बच्चा छोटा होता है तभीसे माता-पिता उसे पाप और पुण्य का भेद समझाने में जुट जाते है पर क्या वह खुद पाप-पुण्य से संबंधित सवालों के जवाब जानते है? आमतौर पर खड़े होने वाले प्रश्न जैसे- पाप और पुण्य का बंधन कैसे होता है? इसका फल क्या होता है?क्या इसमें से कभी भी मुक्ति मिल सकती है?यह मोक्ष के लिए हमें किस प्रकार बाधारूप हो सकता है? पाप बांधने से कैसे बचे और पुण्य किस तरह से बांधे?|||इत्यादि सवालों के जवाब हमें इस पुस्तक में मिलते है| इसके अलावा, दादाजी हमें प्रतिक्रमण द्वारा पाप बंधनों में से मुक्त होने का रास्ता भी बताते है| अगर हम अपनी भूलो का प्रतिक्रमण या पश्चाताप करते है, तो हम इससे छूट सकते है| अपनी पाप –पुण्य से संबंधित गलत मान्यताओं को दूर करने और आध्यात्मिक मार्ग में प्रगति करने हेतु, इस किताब को ज़रूर पढ़े और मोक्ष मार्ग में आगे बढ़े|Mrutyu Samay Pahle Aur Pashchat: मृत्यु समय, पहले और पश्चात
By Dada Bhagwan. 2016
मृत्यु- हमारे जीवन का अविभाज्य अंग है| हर व्यक्ति को अपने जीवन में किसी ना किसी रूप में मृत्यु का…
सामना करना पड़ता है| किसी अपने परिवारजन या पड़ौसी की मृत्यु देखकर वह भयभीत हो जाता है और मृत्यु से संबंधीत तरह तरह की कल्पनाएँ करने लगता है| कई तरह के प्रश्न जैसे – मृत्यु के बाद इंसान कहा जाता है, क्या उसका पुनर्जनम संभव है, वह किस रूप में पुनः जन्म लेता है इत्यादि उसे भ्रमित कर देते है और मृत्यु का खौफ पैदा करते है| परम पूज्य दादा भगवान को हुए आत्मज्ञान द्वारा उन्होंने इस रहस्य से संबंधित अनेक प्रश्नों का जवाब दिया है| जन्म और मृत्यु का चक्र, पुनर्जनम, जन्म-मृत्यु से मुक्ति, मोक्ष की प्राप्ति आदि प्रश्नों के सटीक जवाब हमें उनकी पुस्तक ‘मृत्यु के रहस्य’ में मिलती है| दादाश्री हमें मृत्यु से संबंधित सारी गलत मान्यताओं की सही समझ देकर हमे यह बताते है कि आखिर हमारे जीवन का मुख्य उद्देश्य क्या है और हम किस प्रकार इस चक्कर से हमेशा के लिए मुक्त हो सकते है|Mata Pita Aur Bachcho Ka Vyavhar (Sanxipt): माता-पिता और बच्चो का व्यवहार (संक्षिप्त)
By Dada Bhagwan. 2016
बच्चों की सही परवरिश में माँ-बाप का बहुत बड़ा हाथ होता है| बच्चों के साथ हमेशा प्रेमपूर्वक व्यवहार ही करना…
चाहिए ताकि उन्हें अच्छे संस्कार प्राप्त हो| माँ-बाप बच्चों का व्यवहार सदैव मित्राचारी का होना चाहिए| यदि माँ-बाप बच्चों के साथ डाट कर या मार कर व्यवहार करेंगे तो बच्चे निश्चित ही उनका कहा नहीं मानेंगे और गलत रास्ते पर चढ जाएँगे| माँ-बाप के उच्च संस्कार ही घर में आनंद और शान्ति का माहौल खड़ा कर सकते है| माता पिता का कर्तव्य है कि वह बच्चों की मनोस्थिति को जानकार उसके अनुसार उनके साथ वर्तन करे| आज के ज़माने में टीनएजर्स को संभालना अत्यंत मुश्किल हो गया है| किस तरह से माँ-बाप उनके साथ व्यवहार करे ताकि उन्हें अच्छे संस्कार मिले और वह किसी गलत रास्ते पर ना चले, इस बात कि पूरी समझ हमें इस पुस्तक में मिलती है जिसमें दादाजी ने हमें माँ-बाप बच्चों के सम्बन्ध सुधारने के लिए बहुत सारी चाबियाँ दी है|Manav Dharma: मानव धर्म
By Dada Bhagwan. 2016
मनुष्य जीवन का ध्येय क्या है? इंसान पैदा होता है तबसे ही संसार चक्र में फँसकर लोगो के कहे अनुसार…
करता है| स्कूल-कॉलेज की पढाई करता है, नौकरी या धंधा करता है, शादी करके बच्चे पैदा करता है, और बूढ़े होने पर मर जाता है| तो क्या यही हमारे जीवन का मूल उद्शेय है? परम पूज्य दादाभगवान, मनुष्य जन्म को ४ गतियों का जंक्शन बताते है जहाँसे, देवगति, जानवरगति या नर्कगति में जाने का रास्ता खुला होता है|जिस प्रकार के बीज डाले हो और जिन कारणों का सेवन किया हो, उस गति में आगे जाना पड़ता है| तो, इन फेरो से आखिर हमें मुक्ति कब मिलेगी? दादाजी बताते है कि, मानवता या ‘मानवधर्म’ की सबसे बड़ी परिभाषा ही यह है कि, अगर कोई तुम्हें दुःख दे और तुम्हें अच्छा ना लगे, तो दूसरों के साथ भी ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए| अगले जन्म में अगर नर्कगति या जानवर गति में नहीं जाना हो तो, मानवधर्म का हमेशा ही पालन करना चाहिए| इसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने, यह किताब पढ़े और अपना मनुष्यजीवन सार्थक बनाइये|Mai Kaun Hu: मैं कौन हूँ?
By Dada Bhagwan. 2016
केवल जीवन जी लेना ही जीवन नहीं है। जीवन जीने का कोई ध्येय, कोई लक्ष्य भी तो होगा। जीवन में…
कोई ऊँचा लक्ष्य प्राप्त करने का ध्येय होना चाहिए। जीवन का असली लक्ष्य ‘मैं कौन हूँ’, इस सवाल का जवाब प्राप्त करना है। पिछले अनंत जन्मों का यह अनुत्तरित प्रश्न है। ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री ने मूल प्रश्न “मैं कौन हूँ?” का सहजता से हल बता दिया है। मैं कौन हूँ? मैं कौन नहीं हूँ? खुद कौन है? मेरा क्या है? मेरा क्या नहीं है? बंधन क्या है? मोक्ष क्या है? क्या इस जगत् में भगवान हैं? इस जगत् का ‘कर्ता’ कौन है? भगवान ‘कर्ता’ हैं या नहीं? भगवन का सच्चा स्वरूप क्या है? ‘कर्ता’ का सच्चा स्वरूप क्या है? जगत् कौन चलाता है? माया का स्वरूप क्या है? जो हम देखते और जानते हैं, वह भ्रांति है या सत्य है? क्या व्यावहारिक ज्ञान आपको मुक्त कर सकता है? इस संकलन में दादाश्री ने इन सभी प्रश्नों के सटीक उत्तर दिए हैं।Krodh: क्रोध
By Dada Bhagwan. 2016
हमें क्रोध क्यों आता है? क्रोध आने के कुछ कारण यह है - जब कोई भी कार्य हमारी इच्छानुसार नहीं…
होता या हमें यह लगे कि सामनेवाला व्यक्ति हमारी बात नहीं समझ रहा या फिर किसी बात पर किसी के साथ मनमुटाव हो तब| लेकिन क्रोध आने का कोई भी निश्चित कारण नहीं होता| कई बार हमारी समझ से हमें यह लगता है कि, हम जो भी सोच रहे है या जो कुछ भी कर रहे है वह सब सही ही है| पर, उस वक्त यदि कोई दूसरा व्यक्ति आकार हमें गलत साबित करे तो हम अपना आपा खो बैठते है और उसपर अत्यंत क्रोधित हो जाते है| क्रोध करने से ना सिर्फ सामनेवाला व्यक्ति दुखी होता है पर हमें भी उतना ही दुःख होता है| कई किस्सों में यह देखा गया है कि जिससे हम सबसे अधिक प्यार करते है, उसपर ही सबसे ज्यादा गुस्सा भी करते हैं| इस तरह बिना सोचा समझे गुस्सा करने से कई बार हमारे संबंधो में भी काफी तनाव पैदा हो जाता है जिसका फल अच्छा नहीं होता| किस प्रकार हम अपने क्रोध पर काबू पा सकते है या किसी और क्रोधित व्यक्ति के साथ कैसा बर्ताव करे ताकि हमारे औरों से प्रेमपूर्वक सम्बन्ध बने रहे, इन प्रश्नों का हल पाने के लिए आगे पढ़े|Karma Ka Vignan: कर्म का विज्ञान
By Dada Bhagwan. 2016
जब भी हमारे साथ कुछ भी अच्छा या बुरा होता है तो हम हमेशा यही कहते हैं कि – यह…
सब हमारे कर्मो का ही नतीजा है| पर क्या हम जानते है कि कर्म क्या है और कर्म बंधन कैसा होता है? दादाश्री कहते है कि हमारा सारा जीवन हमारे ही पिछले कर्मो का नतीजा है| जो कुछ भी हमारे साथ अच्छा या बुरा हो रहा हैं, इसके ज़िम्मेदार हम खुद ही है| इस जीवन के कर्मो के बीज तो हमारे पिछले जन्मो में ही पड़ गए थे और अभी हम जो कुछ भी कर रहे है वह सब अगले जन्मों में रूपक में आएगा| लोग अक्सर यही सोचते है कि अच्छे कर्म और बुरे कर्म क्या होते है और किस प्रकार हम कर्म बंधन से मुक्त हो सकते है? दादाजी इसका जवाब देते हुए कहते है कि जिस काम से किसी का भला हो उसे अच्छे कर्म कहते है और जिससे किसी का नुक्सान हो, तो, उसे बुरे कर्म कहते है| कर्म बंधन से मुक्त होने का सबसे आसान और सरल उपाय यही है कि हम नए कर्मो के बीज ना डाले और अभी जो कुछ भी हो रहा है उसको समता से और समभाव से पूरा करे| ऐसा करने से नए कर्मो के बीज नहीं पड़ेंगे और हम इस जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो पाएँगे| कर्म का विज्ञान और उसे चलाने वाली व्यवस्थित शक्ति के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने, ‘कर्म का विज्ञान’, यह किताब ज़रूर पढ़े और अपने जीवन को सुखमय बनाये|Karma Ka Siddhant: कर्म का सिद्धांत
By Dada Bhagwan. 2016
'मैंने किया' बोला कि कर्मबंध हो जाता है। ये 'मैंने किया' इसमें इगोइज़्म(अहंकार) है और इगोइज़्म से कर्म बंधा जाता…
है। जिधर इगोइज़्म ही नहीं, मैंने किया ही नहीं है, वहाँ कर्म नहीं होता है ।Jagat Karta Kaun?: जगत कर्ता कौन?
By Dada Bhagwan. 2016
अनादी कल से जगत की वास्तविकता जानने की मनुष्य की लालसा है मगर वह सही जान नहीं पाया है| मुख्यत:…
वास्तविकता में मैं कौन हूँ, इस जगत को चलाने वाला कौन है तथा इस जगत का रचयिता कौन है, यह जानना है| प्रस्तुत संकलन में सच्चा कर्ता कौन है, यह रहस्य खुल्ला किया गया है| आमतौर पर अच्छा हुआ तो ‘मैंने किया” मान लेता है और बुरा हुआ तो दूसरे पर आक्षेप देता है कि ‘इसने बिगाड़ दिया|’ नहीं तो ‘मेरी ग्रह दशा बिगड़ गयी है’बोलेगा या तो ‘भगवान् ने किया’ ऐसा भी आक्षेप दे देता है| यह सब रोंग मान्यताएं हैं| भगवांन क्या पक्षपात करने वाला है कि आपका नुकसान करे? यह दुनिया किसने बनाई? अगर बनाने वाला होता तो उसको किसने बनाया? फिर उसको भी किसने बनाया? याने उसका अंत ही नहीं है| और दूसरा यह भी प्रश्न पैदा होता है कि दुनिया उसको बनानी ही थी, तो फिर ऐसी कैसी दुनिया बनाई कि जिसमे सभी दुखी हैं? किसी को भी सुख नहीं है? उसकी मज़ा और अपनी सजा, यह कैसा न्याय?! इस काल में करता सम्बन्धी का सिद्धांत पहली बार विश्व को यथार्थ स्वरुप में परम पूज्य दादा भगवान् ने दिया है और वह यह है कि इस दुनिया में कोई स्वतंत्र कर्ता नहीं है| इस दुनिया को रचने वाला या चलाने वाला कोई भी नहीं है| यह जगत चलता है, वह साइंटिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेंस से चलता है| जिसको परम पूज्य दादाश्री ‘व्यवस्थित शक्ति’ कहते हैं| जगत में कोई भी स्वतंत्र करता नहीं है, मगर, सब नैमितिक कर्ता हैं, सभी निमित हैं| गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा था कि, "हे! अर्जुन! तू इस युद्ध में निमित मात्र है, तू युद्ध का कर्ता नहीं है| प्रस्तुत पुस्तिका में करता का रहस्य परम पूज्य दादाश्री की सादी, सरल भाषा में दिल में उतर जाए, इस तरह से समझाया गया है|