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Na skrzydlach nadziei
By Tadeusz Nowakowski. 1984
Tutaj calowac nie wolno (Biblioteka "Nowa Droga" ; nr. 8)
By Marek Nowakowski. 1979
Tamte lata
By Teodozjusz Butyniec. 1979
Dym czarnych swiec
By Jerzy Piechowski. 1981
Miejsce i chwila
By Kornel Filipowicz. 1985
Collection of forty-nine stories and memoirs, spanning twenty-five years, by one of the best-known Polish writers. The title story chronicles…
the thoughts and experience of an urban commuter trying to get to work on time. Polish language
Samson i Dalila
By Jan Dobraczyński. 1987
Vartman Tirthankar Shree Simandhar Swami (Small): वर्तमान तीर्थकर श्री सीमंधर स्वामी
By Dada Bhagwan. 2016
इस काल में इस क्षेत्र से सीधे मोक्ष पाना संभव नहीं है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया हैं। लेकिन लंबे…
अरसे से, महाविदेह क्षेत्र में श्री सीमंधर स्वामी के दर्शन से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुला ही हैं। लेकिन परम पूज्य दादाश्री उसी मार्ग से मुमुक्षुओं को मोक्ष पहुँचानें में निमित्त हैं और इसकी प्राप्ति का विश्वास, मुमुक्षुओं को निश्चय से होता ही है। इस काल में, इस क्षेत्र में वर्तमान तीर्थंकर नहीं हैं। लेकिन महाविदेह क्षेत्र में वर्तमान तीर्थंकर श्री सीमंधर स्वामी विराजमान हैं। वे भरत क्षेत्र के मोक्षार्थी जीवों के लिए मोक्ष के परम निमित्त हैं। ज्ञानीपुरुष ने खुद उस मार्ग से प्राप्ति की और औरों को वह मार्ग दिखाया है। प्रत्यक्ष प्रकट तीर्थंकर की पहचान होना, उनके प्रति भक्ति जगाना और दिन-रात उनका अनुसंधान करके, अंत में, उनके प्रत्यक्ष दर्शन पाकर, केवलज्ञान को प्राप्त करना, यही मोक्ष की प्रथम और अंतिम पगडंडी है। ऐसा ज्ञानियों ने कहा हैं। श्री सीमंधर स्वामी की आराधना, जितनी ज़्यादा से ज़्यादा होगी, उतना उनके साथ अनुसंधान विशेष रहेगा। इससे उनके प्रति ऋणानुबंध प्रगाढ़ होगा। अंत में परम अवगाढ़ दशा तक पहुँचकर उनके चरणकमलों में ही स्थान प्राप्ति की मोहर लगती है।
Satya Asatya ke rahshya: सत्य-असत्य के रहस्य
By Dada Bhagwan. 2016
बहुत सारे लोग, सत्य क्या है और असत्य क्या है, यह जानने के लिए जीवनभर संघर्ष करते रहते है| कुछ…
बाते, किसी के लिए सत्य मानी जाती है तो कुछ लोग उसे असत्य मानकर उसका तिरस्कार करते है| ऐसी दुविधाओं के बीच, लोग यह सोच में पड़ जाते है कि, आखिर सत्य किसे कहे और असत्य किसे माने| आत्मज्ञानी परम पूज्य दादा भगवान हमें, सत्, सत्य और असत्य, इन तीन शब्दों का भेद समझाते है| वह कहते है कि, सत् मतलब शास्वत तत्व, जैसे की हमारा आत्मा, जो एक परम सत्य है और जिसे बदलना संभव नहीं है| हम साक्षात् आत्मस्वरूप है और यही हमारी सही पहचान है, इसे दादाजी ने सत् कहा है| व्यवहार सत्य, मतलब, रिलेटिव में दिखने वाला सत्य लोगो की अपनी मान्याताओं के आधार पर खड़ा होता है| इसलिए यह लोगो के अपने दृष्टिकोण के आधार पर अलग-अलग होता है| सत्य और असत्य तो हमारी माया और मान्यता से ही खड़ा होता है, और वह एक सापेक्ष संकल्पना ही है, जिसका कोई आधार नहीं होता| सत्,सत्य और असत्य के गुढ़ रहस्यों को जानने, यह किताब ज़रूर पढ़े और अपनी भ्रामक मान्याताओं से छुटकारा पाइए|
Sahajta: सहजता
By Dada Bhagwan. 2016
मोक्ष किसे कहते हैं? खुद के शुद्धात्मा पद को प्राप्त करना | जो कुदरती रूप से स्वाभाविक हैं, जो सहज…
हैं| क्योंकि कि कर्मबंधन और अज्ञानता के कारण हमें अपने शुद्ध स्वरुप का ज्ञान नहीं हैं जो स्वाभाव से ही सहज हैं, शुद्धात्मा हैं | तो सहजता किस प्रकार प्राप्त करनी चाहिए ? ज्ञानीपुरुष के पास उसका उपाय हैं और ऐसे महान ज्ञानीपुरुष, दादाश्री ने हमें सहजता प्राप्त करने की चाबियाँ दी हैं | उन्होंने हमें अपने शुद्ध स्वरुप का परिचय कराया(आत्मज्ञान दिया) | मूल आत्मा तो सहज ही हैं, शुद्ध ही हैं | लोग इमोशनल (असहज) हो जाते हैं, क्योंकि उनके विचार, वाणी और वर्तन (मन-वचन-काया) के साथ तन्मयाकार हो जाते हैं | उसे अलग रखने से और उसका ज्ञाता-द्रष्टा रहने से आप सहजता प्राप्त कर सकेंगे | एक बार ज्ञान प्राप्त करने (ज्ञानविधि द्वारा) के बाद खुद का शुद्धात्मा (जो सहज हैं और रहेंगा) जागृत हो जाता हैं फिर, मन-बुद्धि-अहंकार शरीर की सहज स्थिती प्राप्त करने के लिए दादाश्री ने पाँच आज्ञाएँ दी हैं | प्रस्तुत संकलन में दादाश्रीने सहजता का अर्थ, सहज स्थिति में विक्षेप के कारणों, हम ज्ञाता-द्रष्टा रहकर सहजता किस प्रकार प्राप्त करें इन सभी का संपूर्ण विज्ञान दिया हैं | इस पुस्तक का पठन हमें अवश्य ही सहज स्वरुप बनाएगा और शांतिपूर्ण जीवन के तरफ ले जाएगा |
Prem: प्रेम
By Dada Bhagwan. 2016
सच्चा प्रेम हम किसे कहते है? सच्चा प्रेम तो वह होता है जो कभी भी कम या ज़्यादा ना हो…
और हमेशा एक जैसा बना रहे| हमें लगता है कि हमें हमारे आसपास के सभी लोगो पर बहुत प्रेम है पर जब भी वह हमारे कहे अनुसार कुछ नहीं करते तो हम तुरंत ही बहुत गुस्सा हो जाते है| पूज्य दादाभगवान इसे प्रेम नहीं कहते| वह कहते है कि यह सब तो सिर्फ एक भ्रान्ति ही है| सच्चा प्रेम तो वह होता है जिसमें किसी भी प्रकार कि अपेक्षा नहीं होती और जो सबके साथ हर समय और हर परिस्तिथि में एक जैसा बना रहता है| ऐसा सच्चा प्रेम तो बस एक ज्ञानी ही कर सकते है जिन्हें लोगो में कोई भी भेदभाव मालूम नहीं होता और इसलिए उनका व्यवहार सबके साथ बहुत ही स्नेहपूर्ण होता है| फिर भी हम थोड़ी कोशिश करे तो, ऐसा प्रेम कुछ अंश तक हमारे अंदर भी जगा सकते है| यह सब कैसे संभव है, यह जानने के लिए अवश्य पढ़े यह किताब और अपने जीवन को ‘प्रेममय’बनाइये|
Pratikraman (Sanxipt): प्रतिक्रमण (संक्षिप्त)
By Dada Bhagwan. 2016
इंसान हर कदम पर कोई ना कोई गलती करता है जिससे दूसरों को बहुत दुःख होता है| जिसे मोक्ष प्राप्त…
करना है, उसे यह सभी राग-द्वेष के हिसाबो से मुक्त होना होगा| इसका सबसे आसान तरीका है अपने द्वारा किये गए पापों का प्रायश्चित करना या माफ़ी माँगना| ऐसा करने के लिए तीर्थंकरों ने हमें बहुत ही शक्तिशाली हथियार दिया है जिसका नाम है ‘प्रतिक्रमण’|प्रतिक्रमण मतलब, हमारे द्वारा किये गए अतिक्रमण को धो डालना| ज्ञानी पुरुष दादा भगवान ने हमें आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान की चाबी दी है जिससे हम अतिक्रमण से मुक्त हो सकते है| आलोचना का अर्थ होता है- अपनी गलती का स्वीकार करना, प्रतिक्रमण मतलब उस गलती के लिए माफ़ी माँगना और प्रत्याख्यान करने का अर्थ है- दृढ़ निश्चय करना कि ऐसी गलती दोबारा ना हो| इस पुस्तक में हमें हमारे द्वारा किये गए हर प्रकार के अतिक्रमण से कैसे मुक्त हो सके इसका रास्ता मिलता है|
Paiso Ka Vyavhaar (Granth): पैसों का व्यवहार (ग्रंथ)
By Dada Bhagwan. 2016
हमारे जीवन में पैसों का अपना महत्व है। यह संसार पैसों और जायदाद को सबसे महत्वपूर्ण चीज मानता है। कुछ…
भी करने के लिए पैसा ज़रूरी है इसलिए लोगों को पैसों के प्रति अधिक प्रेम है। इसी कारण दुनिया में चारों और नैतिक या अनैतिक तरीके से अधिक से अधिक पैसा प्राप्त करने की लड़ाइयाँ हो रही हैं। पैसों और जायदाद के असमान बंटवारे को लेकर लोग परेशान हैं। इस भयंकर कलयुग में पैसों के बारे में नैतिक और ईमानदार रहना बहुत मुश्किल है ज्ञानी पुरुष परम पूज्य दादा भगवान ने पैसों की दुनिया को जैसा देखा है, वैसी दुनिया से संबंधित पैसे दान और पैसों के उपयोग से संबंधित खुद के विचार रखे हैं। उनके बताए अनुसार पैसे पिछले जन्मों के पुण्य का फल है जब आप औरों की मदद करते हैं तब आपके पास धन संपत्ति आती है, उसके बिना नहीं। जिन्हें दूसरों के साथ बांटने की इच्छा है उन्हें धन संपत्ति प्राप्त होती है। चार प्रकार के दान हैं - अन्न दान औषध दान, ज्ञान दान और अभय दान। पैसों के विज्ञान का विज्ञान नहीं समझने के कारण पैसों के लिए लोभ उत्पन्न हुआ है जिसके कारण जन्म के बाद जन्म होते रहते हैं। अतः इस पुस्तक को पढ़ें समझें और पैसों से संबंधित आध्यात्मिक विचार ग्रहण करें।
Nijdosh Darshan se Nirdosh!: निजदोष दर्शन से... निर्दोष!
By Dada Bhagwan. 2016
परम पूज्य दादाश्री का ज्ञान लेने के बाद, आप अपने भीतर की सभी क्रियाओं को देख सकेंगे और विश्लेषण कर…
सकेंगे। यह समझ, पूर्ण ज्ञान अवस्था में पहुँचने की शुरूआत है। ज्ञान के प्रकाश में आप बिना राग द्वेष के, अपने अच्छे व बुरे विचारों के प्रवाह को देख पाएँगे। आपको अच्छा या बुरा देखने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि विचार परसत्ता है। तो सवाल यह है कि ज्ञानी दुनिया को किस रूप में देखतें हैं ? ज्ञानी जगत् को निर्दोष देखते हैं। ज्ञानी यह जानते हैं कि जगत की सभी क्रियाएँ पहले के किए हुए चार्ज का डिस्चार्ज हैं। वे यह जानते हैं कि जगत निर्दोष है। नौकरी में सेठ के साथ कोई झगड़ा या अपमान, केवल आपके पूर्व चार्ज का डिस्चार्ज ही है। सेठ तो केवल निमित्त है। पूरा जगत् निर्दोष है। जो कुछ परेशानियाँ हमें होती हैं, वह मूलतः हमारी ही गलतियों के परिणाम स्वरूप होती हैं। वे हमारे ही ब्लंडर्स व मिस्टेक्स हैं। ज्ञानी की कृपा से सभी भूलें मिट जाती हैं। आत्म ज्ञान रहित मनुष्य को अपनी भूले न दिखकर केवल औरों की ही गलतियाँ दिखतीं हैं। निजदोष दर्शन पर परम पूज्य दादाश्री की समझ, तरीके, और उसे जीवन में उतारने की चाबियाँ इस किताब में संकलित की गई हैं। ज्ञान लेने के बाद आप अपनी मन, वचन, काया का पक्ष लेना बंद कर देते हैं और निष्पक्षता से अपनी गलतियाँ खुद को ही दिखने लगती हैं, तथा आंतरिक शांति की शुरूआत हो जाती है।
Klesh Rahit Jeevan: क्लेश रहित जीवन
By Dada Bhagwan. 2016
क्या आप जीवन में उठनेवाले विभिन्न क्लेशों से थक चुके हो ? क्या आप हैरान हो कि नित्य नए क्लेश…
कहाँ से उत्पन्न हो जाते हैं ? क्लेश रहित जीवन के लिए आपको केवल पक्का निश्चय करना है कि आप लोगों के साथ सारा व्यवहार समभाव से निपटाओगे। यह चिंता नहीं करनी कि आप इसमें सफल होंगे या नहीं। केवल दृढ निश्चय करना है। फिर आज या कल, जीवन में शांति आकर ही रहेगी। हो सकता है कि इसमें कुछ साल भी लग जाएँ। क्योंकि आपके बहुत चीकने कर्म हैं। यदि बीवी-बच्चों के साथ बहुत उलझे हुए कर्म हों तो निकाल करने में अधिक समय लग जाता है। करीबी लोगों के साथ उलझने क्रमशः ही समाप्त होती हैं। यदि आप एक बार समभाव से निकाल करने का दृढ निश्चय कर लेंगे तो आपके सभी क्लेशों का अंत आएगा। चिकने कर्मों का निकाल करते वक्त आपको अत्यंत जागृत रहना होगा। साँप चाहे कितना भी छोटा हो, आपको सावधानी रहते हुए आगे बढ़ना होगा। अगर आपने लापरवाही और सुस्ती दिखाई तो इन मामलों को सुलझाने में असफल होंगे। व्यवहार में सभी के साथ समभाव से निकाल करने के दृढ़ निश्चय के बाद, यदि कोई आपको कटु वाणी बोल दे और आपकी भी कटु वाणी निकल जाए, तो आपके बाहरी व्यवहार का कोई महत्व नहीं, क्योकि आपकी घृणा समाप्त हो चुकी है। और आपने समभाव से निकाल का दृढ़ निश्चय कर रखा है। घृणा अहंकार का भाव है और वाणी शरीर का भाव है। अगर आपने समभाव से निकाल करने का दृढ़ निश्चय किया है, तो आप अवश्य सफल होंगे तथा आपके सभी कर्म भी समाप्त होंगे। आज अगर आप किसी का लोन नहीं चुका पाते, तो भविष्य में ज़रूर चुकता कर पाएँगे। आपके ऋण दाता आपसे आखिरकर आपसे उगाही कर ही लेंगे। “प्रतिशोध के सभी भावनाओं से मुक्त होने के लिए आपको परम पूज्य दादाश्री के पास आकर ज्ञान ले लेना चाहिए। मैं आपको इसी जीवन में प्रतिशोध की सभी भावनाओं से मुक्त होने का रास्ता दिखाऊँग
Guru Shishya: गुरु शिष्य
By Dada Bhagwan. 2016
लौकिक जगत् में बाप-बेटा, माँ-बेटी, पति-पत्नी, वगैरह संबंध होते हैं। उनमें गुरु-शिष्य भी एक नाजुक संबंध है। गुरु को समर्पित…
होने के बाद पूरी ज़िंदगी उसके प्रति ही वफादार होकर, परम विनय तक पहुँचकर, गुरु की आज्ञा के अनुसार साधना करके, सिद्धि प्राप्त करनी होती है। लेकिन सच्चे गुरु के लक्षण और सच्चे शिष्य के लक्षण कैसे होते हैं ? उसका सुंदर विवेचन इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। गुरुजनों के लिए इस जगत् में विविध मान्यताएँ प्रवर्तमान है। तब ऐसे काल में यथार्थ गुरु बनाने के लिए लोग उलझन में पड़ जाते हैं। यहाँ पर ऐसी ही उलझनों के समाधान दादाश्री ने प्रश्नकर्ताओं को दिए है। सामान्य समझ से गुरु, सदगुरु और ज्ञानीपुरुष –तीनों को एक साथ मिला दिया जाता है। जब कि परम पूज्य दादाश्री ने इन तीनों के बीच का एक्ज़ेक्ट स्पष्टीकरण किया है। गुरु और शिष्य –दोनों ही कल्याण के मार्ग पर आगे चल सके, उसके लिए तमाम दृष्टीकोणों से गुरु-शिष्य के सभी संबंधों की समझ, लघुतम फिर भी अभेद, ऐसे ग़ज़ब के ज्ञानी की वाणी यहाँ संकलित की गई है।
Gnani Purush Kee Pahachaan: ज्ञानीपुरुष की पहचान
By Dada Bhagwan. 2016
कभी ज्ञानीपुरुष मिल जाए, जो मुक्त पुरुष हैं, परमेनन्ट मुक्तिहै, ऐसा कोई मिल जाए तो अपना काम हो जाता है।…
शास्त्रों के ज्ञानी तो बहुत है, मगर उससे तो कोई काम नहीं चलेगा। सच्चा ज्ञानी चाहिए, मोक्ष का दान देनेवाला चाहिए।
Chamatkar: चमत्कार
By Dada Bhagwan. 2016
आज के युग में जहाँ विज्ञान ने इतनी प्रगति की है वहाँ लोगो के बीच अभी भी बहुत सारी चमत्कार…
और जादू-टोना संबंधित भ्रामक मान्यताएँ है| चमत्कार का मतलब है हमारी समझ से परे किसी अद्वितीय शक्ति का अस्तित्व होना| हमारे भारत देश में लोगो को धर्म और चमत्कार के नाम पर गुमराह करना बहुत ही आसान है क्योंकि किसी अवांछित घटना से बचने के लिए लोग इन बातों पर आसानी से भरोसा कर लेते है| ज्ञानी पुरुष दादा भगवान हमें इन चमत्कारों में छुपी हुई सच्चाई से वाकिफ कराते हुए चमत्कार और सिद्धि के बीच का अंतर बताते है| सामान्यतः लोगो में खड़े होने वाले प्रश्न जैसे- चमत्कार कौन करता है? किस तरह वह हमारे जीवन को प्रभावित करता है? क्या हम कोई चमत्कार करके भगवान को प्रसन्न कर सकते है?||इत्यादि के उत्तर हमें इस पुस्तक में मिलते है| दादाश्री स्पष्टतौर पर यही बताना चाहते है कि आत्मा इन सभी बातों से परे हैं और आत्म-साक्षात्कार मोक्ष प्राप्त करने का एकमात्र सरल उपाय है| आध्यात्मिकता और चमत्कार के बीच का सही अंतर जानने के लिए यह किताब अवश्य पढ़े|
Aptavani Shreni 6: आप्तवाणी श्रेणी ६
By Dada Bhagwan. 2016
हममें से ज्यादातर लोग हमेशा एक समस्याका सामना कर रहें हैं | जिसमे एक तरफ व्यव्हारमें हरेक क्षण बाहरी प्रश्न…
खड़े होते हैं, और दूसरी तरफ अंदरूनी संघर्षमे भी फँसे हुए रहते हैं और अकेले हाथों से उनको हल करना होता है | हम जानते है की कभी - कभी हमारी वाणी के प्रश्न खड़े किये होते है, या हमको किसीने कुछ कहा इसलिए हम दुखी होते है, या तो हम दूसरेका बूरा सोचते है या फिर हमें लगता है हमारे साथ अन्याय हुआ है अथवा हम खुद ही अंदरसे शांतिका अनुभव नहीं कर सकते | सांसारिक जीवन व्यवहार वह समस्याओं का संग्रह्स्थान है | एक समस्या का हल आता है की पीछे और समस्या खड़ी हो जाती है | क्यूँ हमें ऐसी समस्याओंका सामना करना पड़ता है? क्यूँ हम अनंत जन्मोंसे भटकते रहते है? ‘अटकण’ की वजह से! हकीकतमे खुदके पास आत्माका परम आनंद था ही, परंतु खुद दैहिक सुखोंकी अटकणों में डूब गए थे | यह अटकण ज्ञानीपुरुषकी कृपा से और उसके बाद अपने पराक्रमसे टूट सकती है | एक बार आपको आत्मज्ञान होगा, तो जगत शांत हो जायेगा | यह जीवन दूसरों की व्यर्थ चर्चा मे व्यय करने के लिए नहीं है | यह जगत जैसा है वैसा है | उसमे आपको आपकी ‘खुद’की सेफ साइड ढूँढ निकालनी है | तो चलो, हम डूब की लगायें और जाने की यह अक्रम विज्ञान कैसे बंधन, कर्म, वाणी, प्रतिक्रमण, कुदरत के नियम ईत्यादि का विज्ञान समझने में उपयोगी है जिससे सर्व सांसारिक समस्याओं के तूफानो का डटकर सामना करना आसान हो जाए |
Aptavani Shreni 5: आप्तवाणी श्रेणी ५
By Dada Bhagwan. 2016
व्यवस्थित शक्ति के द्वारा हमारे जीवन का समस्त सांसारिक व्यवहार डिस्चार्ज हो रहा है। हमारी पाँचों इन्द्रियाँ कर्म के अधीन…
हैं। कर्मों के बंधन का कारण क्या है? यह धारणा की कि ‘मैं चंदुलाल हूँ’ वह कर्म बंधन का मूल कारण है। सिर्फ सच (तथ्य) जानने की आवश्यकता है। यह एक विज्ञान है। इस पुस्तक में परम पूज्य दादाश्री ने पाँच ज्ञान इन्द्रियों तथा उनके कार्यों की प्रणाली के बारे में बताया है। मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार, यह सब इन्द्रियों के अलग-अलग कार्य हैं। फिर अपना कार्य करने में कौन असफल रहा? ‘स्व’ रहा। ‘स्व’ का कार्य है जानना, देखना और हमेंशा आनंदमय स्थिति में रहना। हर इन्सान ज़िंदगी के बहाव के साथ आगे बह रहा है। यहाँ कोई भी कर्ता नहीं है। अगर कोई स्वतंत्र कर्ता होता तो वह हमेंशा बंधन में ही रहता। जो नैमित्तिक कर्ता है वह कभी भी बंधन में नहीं रहता। संसार प्राकृतिक परिस्थितियों के प्रभाव से उत्त्पन्न परिणाम पर ही चलता है। ऐसी परिस्थिति में ‘मैं कर्ता हूँ’ की गलत धारणा की उत्पत्ति होती है। इस कर्तापन की गलत धारणा की वजह से अगले जन्म के बीज बोए जाते हैं। इस संकलन में परम पूज्य दादाश्री ने कर्म के विज्ञान, कर्तापन, पाँच इन्द्रियों, अहंकार, मनुष्यों का स्वभाव, ज्ञानियों के प्रति विनय, पापों का प्रतिक्रमण, प्रायश्चित इत्यादि विषयों के बारे में बताया है। यह समझ साधकों को स्वयं के बारे में व संसार में दूसरों से कैसे शांतिपूर्वक व्यवहार करें, इस बारे में मदद करती है।
Aptavani Shreni 4: आप्तवाणी श्रेणी ४
By Dada Bhagwan. 2016
जो आप स्वयं हैं उसमे इतनी क्षमता है कि वह पूरी दुनिया को प्रकाशित कर सके। स्वयं में अनंत ऊर्जा…
है, फिर भी हम बहुत दुःख, कष्ट, मजबूरी और असुरक्षा का अनुभव करते हैं। यह बात कितनी विरोधाभासी हैं। हमें अपने स्वरूप की शक्ति और सत्ता का सही ज्ञान नहीं है। जब हम स्वयं जागृत हो जाते हैं तो हमें सारी सृष्टि के मालिक होने का एहसास होता है। आम तौर पर जिसे जागना कहा जाता है, ज्ञानी उसे निद्रा कहते हैं। सारा विश्व भावनिद्रा में डूबा हुआ है। जागृति या समझ की कमी की वजह से हम यह नहीं जान पाते कि इस दुनिया में और दूसरी दुनिया में हमारे लिए क्या लाभदायक है और क्या हानिकारक है। इस समय भावनिद्रा के कारण, अहंकार, मान, क्रोध, छलकपट, लोभ तथा अलग-अलग मान्यताओं और चिंता के कारण सब लोग मतभेद महसूस करते हैं। जिसे यह जागरूकता है कि ‘मैं जागृत हूँ’ और मन के विचार ‘स्व’से बिल्कुल अलग है, जिसे आत्मा के विज्ञान की अनुभूति हो गई, वह संसार में रहकर ही जीवन मुक्त हो जाता है। इस पुस्तक में ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री ने यह ज्ञान दिया है कि हम स्वयं के प्रति कैसे जागृत रहें, ध्यान, प्रारब्ध और स्वतंत्र इच्छा, घृणा तिरस्कार, अनादर स्वयं का सांसारिक धर्म, जीवनमुक्ति का लक्ष्य तथा कर्म का विज्ञान आदि के बारे में ज्ञान दिया है। जो लोग स्वयं का सही अर्थ जानने के उत्सुक हैं उन्हें यह पढ़ने से मुक्ति के पंथ पर आगे बढ़ने में मदद मिलेगी और यह पढ़ाई उनकी जागृति बढ़ाएगी।