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This book prescribed by central board of secondary education, India for the stduents of class 8th subject Social Studies, studying…
through hindi medium. This accessible version of the book doesn't leave any part of the book. The book is handy companion of the school going studentsBy Rhonda Byrne. 2014
यह कहानी इस बारे में है कि आप इस पृथ्वी नामक ग्रह पर क्यों हैं। इस किताब में आज के…
संसार के बारह सबसे सफल लोग अपनी असंभव दिखने वाली कहानियाँ बता रहे हैं और यह दिखा रहे हैं कि आप हर उस चीज़ के साथ पैदा हुए थे, जिसकी ज़रूरत आपको अपना सबसे महान सपना पूरा करने के लिए है।By Dada Bhagwan. 2016
प्रत्येक मनुष्य में आत्मा को पहचानकर अपना आत्यंतिक कल्याण (मोक्ष प्राप्ति) करने की शक्ति होती है| लेकिन, इस मार्ग में…
विषय सब से बड़ा बाधक कारण बन सकता है| सिर्फ प्रत्यक्ष ज्ञानीपुरुष ही विषय आकर्षण के पीछे रहे विज्ञान को समझाकर उसमें से निकलने में हमारी सहायता कर सकते हैं| प्रस्तुत पुस्तक में पूज्य दादाश्री ने विपरीत लिंग के प्रति होते आकर्षण के इफेक्ट और कॉज़ का वर्णन किया हैं | उन्होंने यह बताया है कि विषय–विकार किस प्रकार से जोखमी हैं - वे मन और शरीर पर किस तरह विपरित असर डालते हैं और कर्म बंधन करवाते हैं| प्रस्तुत पुस्तक के खंड-१ में मूल रूप से आकर्षण- विकर्षण के सिद्धांत का वर्णन किया गया है और साथ ही यह आत्मानुभव में किस प्रकार से बाधक है और ब्रम्हचर्य के माहात्मय के प्रति समर्पित है| प्रस्तुत पुस्तक खंड- २ में ब्रम्हचर्य पालन करनेवाले निश्चयी के लिए सत्संग संकलित हुआ है | ज्ञानीपुरुष के श्रीमुख से ब्रम्हचर्य का परिणाम जानने के बाद उसके प्रति आफरीन हुए साधक में उस तरफ कदम बढ़ाने की हिम्मत आती है। ज्ञानी के संयोग से, सत्संग व सानिध्य प्राप्त करके, मन-वचन-काया से अखंड ब्रम्हचर्य में रहने का दृढ़- निश्चयी बनता है| ब्रम्हचर्य पथ पर प्रयाण करने हेतु और विषय के वट-वृक्ष को जड़-मूल से उखाड़कर निर्मूल करने हेतु इस मार्ग में बिछे हुए पत्थरों से लेकर पहाड़ जैसे विघ्नों के सामने, डगमगाते हुए निश्चय से लेकर ब्रम्हचर्य व्रत से च्युत होने के बावजूद ज्ञानीपुरुष उसे जागृति की सर्वोत्कृत श्रेणियाँ पार करवाकर निर्ग्रंथाता की प्राप्ति करवाए, उस हद तक की विज्ञान- दृष्टी खोल देते हैं और विकसित करते हैं| तो यह पुस्तक पढ़कर शुद्ध ब्रम्हचर्य किस तरह उपकारी है, ऐसी समझ प्राप्त करें|By Dada Bhagwan. 2016
इंसान हर कदम पर कोई ना कोई गलती करता है जिससे दूसरों को बहुत दुःख होता है| जिसे मोक्ष प्राप्त…
करना है, उसे यह सभी राग-द्वेष के हिसाबो से मुक्त होना होगा| इसका सबसे आसान तरीका है अपने द्वारा किये गए पापों का प्रायश्चित करना या माफ़ी माँगना| ऐसा करने के लिए तीर्थंकरों ने हमें बहुत ही शक्तिशाली हथियार दिया है जिसका नाम है ‘प्रतिक्रमण’|प्रतिक्रमण मतलब, हमारे द्वारा किये गए अतिक्रमण को धो डालना| ज्ञानी पुरुष दादा भगवान ने हमें आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान की चाबी दी है जिससे हम अतिक्रमण से मुक्त हो सकते है| आलोचना का अर्थ होता है- अपनी गलती का स्वीकार करना, प्रतिक्रमण मतलब उस गलती के लिए माफ़ी माँगना और प्रत्याख्यान करने का अर्थ है- दृढ़ निश्चय करना कि ऐसी गलती दोबारा ना हो| इस पुस्तक में हमें हमारे द्वारा किये गए हर प्रकार के अतिक्रमण से कैसे मुक्त हो सके इसका रास्ता मिलता है|By Shalini Joshi. 2020
Citizens’ rights and institutional autonomy are dependent on ethical journalism, but corporatisation, market controls, political pressures and favouritism have made…
it difficult for media professionals to follow ethical standards and practice socially responsible journalism. This is a reference book for academics working in media studies, media professionals and students of journalism and mass communication. It is also meant for people in positions of authority in media organisations, for whom an understanding of ethical guidelines and duties of the media as well as legal limitations are of vital importance. This book will be of help both to academics and students and to journalists who face ethical dilemmas and experience the many challenges to fearless journalism.By Dada Bhagwan. 2016
ब्रम्हचर्य व्रत, भगवान महावीर द्वारा दिये हुए ५ महाव्रतो का हिस्सा है| मोक्ष प्राप्त करने ब्रम्हचर्य व्रत का पालन करना…
चाहिए, यह समझ बहुत सारे लोगो में है पर विषय करना क्यों गलत है या उसमें से हम छुटकारा कैसे पा सकते है, यह सब कोई नहीं जानता| विषय यह हमारी पाँचो इन्द्रियों में से किसी भी इन्द्रिय को पसंद नहीं आता| आँखों को देखना अच्छा नहीं लगता, नाक को सूंघना पसंद नहीं, जीभ से चख ही नहीं सकते और ना ही हाथ से छू सकते है| पर फिर भी सच्चा ज्ञान नहीं होने के कारण लोग विषय में निरंतर लीन होते है क्योंकि उन्हें इसके जोख्मों के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है| अपने हक्क के साथी के साथ भी विषय करने में अनगिनत सूक्ष्म जीवों का नाश होता है और अनहक्क के विषय का नतीजा तो नरकगति है| इस पुस्तक द्वारा आपको ब्रम्हचर्य क्या है,इसके क्या फायदे है, ब्रम्हचर्य का पालन कैसे करे वगैरह प्रश्नों के जवाब मिलेंगे|By Dada Bhagwan. 2016
एक सुखी और अच्छा जीवन बिताने हेतु, पैसा हमारा जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है| पर क्या कभी आपने…
यह सोचा है कि, ‘ क्यों किसी के पास बहुत सारा पैसा होता है और किसी के पास बिल्कुल नहीं?’ परम पूज्य दादाजी का हमेशा से यही मानना था कि, पैसों के व्यवहार में नैतिकता बहुत ही ज़रूरी है| अपने अनुभवों के आधार पर और ज्ञान की मदद से वह पैसों के आवन-जावन, नफा-नुक्सान, लेन-देन आदि के बारे में बहुत ही विगतवार जानते थे| वह कहते थे कि मन की शान्ति और समाधान के लिए किसी भी व्यापार में सच्चाई और ईमानदारी के साथ नैतिक मूल्यों का होना भी बहुत ही ज़रूरी है| जिसके बिना भले ही आपके पास बुहत सारा धन हो पर अंदर से सदैव चिंता और व्याकुलता ही रहेगी| अपनी वाणी के द्वारा दादाजी ने हमें पैसों के मामले में खड़े होने वाले संघर्षों से कैसे मुक्त हो और किस प्रकार बिना किसी मनमुटाव के और ईमानदारी से, अपना पैसों से संबंधित व्यवहार पूरा करे इसका वर्णन किया है जो हम इस किताब में पढ़ सकते है|By Dada Bhagwan. 2016
‘वाणी,व्यवहार में’, यह पुस्तक में हमें वाणी से संबंधित कई सारे मौलिक सिद्धांतों की जानकारी प्राप्त होती है| वाणी मुख्यतः…
निर्जीव है, यह सिर्फ एक टेप रिकॉर्ड है, जिसकी पूरी रिकॉर्डिंग हमारे पिछले जन्मो में हुई है| वाणी, एक बहुत ही अमूल्य वस्तु है जिसकी कीमत समझना बहुत ज़रूरी है| हमारी वाणी ऐसी होनी चाहिए कि जिससे किसीको भी दुःख ना हो| दादाश्री इस किताब में हमें वाणी कि महत्वता, हमारे रोजिंदा जीवन में होने वाले व्यवहार को लक्ष में रखकर, बहुत सारे उदाहरणों के साथ बताते है जिससे हमें यह समझ में आता है कि हम हमारी वाणी को किस तरह कोमल और मधुर बना सकते है| जिस तरह किसी टेप को बजाने से पहले उसमें रिकॉर्डिंग करनी होती है उसी तरह हमारे मुँह से जो वाणी निकलती है वह सब पिछले जन्मो में की हुई रिकॉर्डिंग का ही परिणाम है| वाणी के सिद्धांतों को और अधिक गहराई में समझने के लिए यह किताब अवश्य पढ़े|By Dada Bhagwan. 2016
जो दुःख भोगे तो उसकी भूल और सुख भोगे तो उसका इनाम। लेकिन भ्रांति का कानून निमित्त को पकड़ता है।…
भगवान का कानून, रीयल कानून, तो जिसकी भूल होगी, उसको पकड़ेगा। वह कानून एक्ज़ेक्ट है और उसमें कोई परीवर्तन कर सके, ऐसा है ही नहीं। ऐसा कोई कानून जगत् में नहीं है जो किसी को ‘भुगतना’ [दुःख] दे सके। जब कभी हमें अपनी भूल के बिना भुगतना पड़ता है, तब हृदय को चोट लगती है, और वह पूछता है – मेरा क्या कसूर है ? मैंने क्या गलत किया ? भूल किसकी है ? चोर की या जिसका चुराया गया है उसकी ? इन दोनों में से कौन भुगत रहा है ? “जो भुगते उसीकी भूल”। प्रस्तुत संकलन में, दादाश्री ने “भुगते उसीकी भूल” का विज्ञान प्रकट किया है। इसे प्रयोग में लाने से आपकी सारी गुत्थियाँ सुलझ जाएँ, ऐसा अनमोल यह सूत्र है।By Dada Bhagwan. 2016
केवल जीवन जी लेना ही जीवन नहीं है। जीवन जीने का कोई ध्येय, कोई लक्ष्य भी तो होगा। जीवन में…
कोई ऊँचा लक्ष्य प्राप्त करने का ध्येय होना चाहिए। जीवन का असली लक्ष्य ‘मैं कौन हूँ’, इस सवाल का जवाब प्राप्त करना है। पिछले अनंत जन्मों का यह अनुत्तरित प्रश्न है। ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री ने मूल प्रश्न “मैं कौन हूँ?” का सहजता से हल बता दिया है। मैं कौन हूँ? मैं कौन नहीं हूँ? खुद कौन है? मेरा क्या है? मेरा क्या नहीं है? बंधन क्या है? मोक्ष क्या है? क्या इस जगत् में भगवान हैं? इस जगत् का ‘कर्ता’ कौन है? भगवान ‘कर्ता’ हैं या नहीं? भगवन का सच्चा स्वरूप क्या है? ‘कर्ता’ का सच्चा स्वरूप क्या है? जगत् कौन चलाता है? माया का स्वरूप क्या है? जो हम देखते और जानते हैं, वह भ्रांति है या सत्य है? क्या व्यावहारिक ज्ञान आपको मुक्त कर सकता है? इस संकलन में दादाश्री ने इन सभी प्रश्नों के सटीक उत्तर दिए हैं।By Dada Bhagwan. 2016
कुदरत के न्याय को यदि इस तरह समझोगे की “हुआ सो न्याय” तो आप इस संसार से मुक्त हो जाओगे।…
लोग जीवन में न्याय और मुक्ति एक साथ ढूँढते हैं। यहाँ पूर्ण विरोधाभास की स्थिति है। ये दोनों आपको एक साथ मिल ही नहीं सकते। प्रश्नों का अंत आने पर ही मुक्ति की शुरूआत होती है। अक्रम विज्ञान में सभी प्रश्नों का अंत आ जाता है, इसलिए यह बहुत ही सरल मार्ग है। दादाश्री की यह अनमोल खोज है की कुदरत कभी अन्यायी हुई ही नहीं है। जगत् न्याय स्वरूप ही है। जो हुआ सो न्याय ही है। कुदरत कोई व्यक्ति या भगवान नहीं है कि उस पर किसी का जोर चल सके। कुदरत यानि साईन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एवीडेन्स। कितने सारे संयोग इकट्ठे हों, तब कार्य होता है। दादाश्री के इस संकलन में, हुआ सो न्याय का विज्ञान प्रस्तुत किया गया है। इस सूत्र का जितना उपयोग जीवन में होगा, उतनी ही शांति बढेगी।By Dada Bhagwan. 2016
दैनिक जीवन में टकराव का समाधान करने की जरूरत को सभी समझते हैं। हम टकराव करके अपना सबकुछ बिगाड़ लेते…
हैं। यह तो हमें बिल्कुल अनुकूल नहीं होता। सड़क पर लोग ट्राफिक़ के नियमों का सख्ती से पालन करते हैं। लोग अपनी मनमानी नहीं करते, क्योंकि मनमानी से तो टकराओगे और मर जाओगे। टकराने में जोखिम है। इसी प्रकार व्यावहारिक जीवन में भी टकराव टालना है। ऐसा करने से जीवन क्लेश रहित होगा और मोक्ष की प्राप्ति होगी। जीवन में क्लेश का कारण जीवन के नियमों की अधूरी समझ है। जीवन के नियमों की हमारी समझ में, मूलभूत कमियाँ हैं। जिस व्यक्ति से आप इन नियमों को समझें, उसे इन नियमों की घहरी समझ होनी चाहिए। इस पुस्तक से आप जान पाएँगे की टकराव क्यों होता है? टकराव के प्रकार क्या हैं? और टकराव कैसे टालें की जीवन क्लेश रहित हो जाए। इस पुस्तक का लक्ष्य आपके जीवन को शांति और उल्लास से भरना है, तथा मोक्ष मार्ग में आपके क़दमों को मज़बूत करना है।By Dada Bhagwan. 2016
सेवा का मुख्य उद्देश्य है कि मन-वचन-काया से दूसरों की मदद करना| जो व्यक्ति खुद के आराम और सुविधाओं के…
आगे औरो की ज़रूरतों को रखता है वह जीवन में कभी भी दुखी नहीं होता| मनुष्य जीवन का ध्येय, दूसरों की सेवा करना ही होना चाहिए| परम पूज्य दादाभगवान ने यह लक्ष्य हमेशा अपने जीवन में सबसे ऊपर रखा कि, जो कोई भी व्यक्ति उन्हें मिले, उसे कभी भी निराश होकर जाना ना पड़े| दादाजी निरंतर यही खोज में रहते थे कि, किस प्रकार लोग अपने दुखों से मुक्त हो और मोक्ष मार्ग में आगे बढे| उन्होंने अपनी सुख सुबिधाओं की परवाह किये बगैर ज़्यादा से ज़्यादा लोगो का भला हो ऐसी ही इच्छा जीवनभर रखी| पूज्य दादाश्री का मानना था कि आत्म-साक्षात्कार, मोक्ष प्राप्त करने का आसान तरीका था पर जिसे वह नहीं मिलता हैं, उसने सेवा का मार्ग ही अपनाना चाहिए| किस प्रकार लोगो की सेवा कर सुख की प्राप्ति करे, यह विस्तृत रूप से जानने के लिए यह किताब ज़रूर पढ़े|By Dada Bhagwan. 2016
यदि एक सीवर में बदबू आए तो क्या हम सीवर से लड़ते हैं ? इसी प्रकार ये झगडालू दृष्टिकोणवाले मनुष्य…
भी दुर्गंध फैलाते हैं, तो क्या हम उनसे कुछ कहने जाएँ ? दुर्गंध फैलाए वे सभी सीवर कहलाएँ, तथा सुगंध फैलाए वे सभी बाग़ कहलाएँगे। जिस-जिस से दुर्गंध आती है, वे सभी कहते हैं, “आप हमसे वीतराग रहें” | हमने जीवन में अनेकों बार, परिस्थितियों के साथ समझौता किया है। उदाहरणत: बारिश में हम छाता लेकर जाते हैं। पढाई पसंद हो या न हो करनी ही पड़ती है। ये सभी एडजस्टमेन्ट लेने पड़ते हैं। फिर भी नकारात्मक लोगों से सामना होने पर हम टकराव में आ जाते हैं। ऐसा क्यों होता है ? परम पूज्य दादाश्री ने खुलासा किया है कि ‘एडजस्ट एवरीव्हेर’ वह ‘मास्टर की’ है जो आपके संसार को सुखमय बना देगी। यह सरल सूत्र आपके संसार को बदल देगा! और जानने के लिए आगे पढ़ेBy Dada Bhagwan. 2016
जीवमात्र क्या ढूंढता है? आनंद ढूंढता है, लेकिन घड़ीभर भी आनंद नहीं मिल पाता | विवाह समारोह में जाएँ या…
नाटक में जाएँ, लेकिन वापिस फिर दुःख आ जाता है | जिस सुख के बाद दुःख आए, उसे सुख ही कैसे कहेंगे? वह तो मूर्छा का आनंद कहलाता है | सुख तो परमानेन्ट होता है | यह तो टेम्परेरी सुख हैं और बल्कि कल्पित हैं, माना हुआ है | हर एक आत्मा क्या ढूंढता है? हमेशा के लिए सुख, शाश्वत सुख ढूंढता है | वह ‘इसमें से मिलेगा, इसमें से मिलेगा | यह ले लूँ, ऐसा करूँ, बंगला बनाऊ तो सुख आएगा, गाड़ी ले लूँ तो सुख मिलेगा’, ऐसे करता रहता है | लेकिन कुछ भी नहीं मिलता | बल्कि और अधिक जंजालों में फँस जाता है | सुख खुद के अंदर ही है, आत्मा में ही है | अत: जब आत्मा प्राप्त करता है, तब ही सनातन (सुख) ही प्राप्त होगा |By Dada Bhagwan. 2016
चिंता से काम बिगड़ते हैं, ऐसा कुदरत का नियम है। चिंता मुक्त होने से सभी काम सुधरते हैं। पढ़े-लिखे खाते-पीते…
घरों के लोगों को अधिक चिंता और तनाव हैं। तुलनात्मक रूप से, मज़दूरी करनेवाले, चिंता रहित होते हैं और चैन से सोते हैं। उनके ऊपरी (बॉस) को नींद की गोलियाँ लेनी पड़ती हैं। चिंता से लक्ष्मी भी चली जाती है। दादाश्री के जीवन का एक छोटा सा उदाहरण है। जब उन्हें व्यापार में घाटा हुआ, तो वे किस तरह चिंता मुक्त हुए। “एक समय, ज्ञान होने से पहले, हमें घाटा हुआ था। तब हमें पूरी रात नींद नहीं आई और चिंता होती रहती थी। तब भीतर से उत्तर मिला की इस घाटे की चिंता अभी कौन-कौन कर रहा होगा? मुझे लगा कि मेरे साझेदार तो शायद चिंता नहीं भी कर रहे होंगे। अकेला मैं ही चिंता कर रहा हूँ। और बीवी-बच्चे वगैरह भी हैं, वे तो कुछ जानते भी नहीं। अब वे कुछ जानते भी नहीं, तब भी उनका चलता है, तो मैं अकेला ही कम अक्लवाला हूँ, जो सारी चिंताएँ लेकर बैठा हूँ। फिर मुझे अक्ल आ गई, क्योंकि वे सभी साझेदार होकर भी चिंता नहीं करते, तो क्यों मैं अकेला ही चिंता किया करूँ?” चिंता क्या है? सोचना समस्या नहीं है। अपने विचारों में तन्मयाकर हुआ कि चिंता शुरू। ‘कर्ता’ कौन हैं, यह समझ में आ जाए तभी चिंता जाएगी।By Dada Bhagwan. 2016
दान का अर्थ होता है किसीको कुछ देना| यह दान पैसों के रूप में हो सकता है, खाने के रूप…
में या सिर्फ किसी को खुश करने हेतु हो सकता है| दान देने से हमें खुशी मिलती है क्योंकि हमें लगता है कि हमने कुछ अच्छा काम किया है| दान करने से बहुत सारे फायदे होते है| जिसका विस्तारित वर्णन दादाश्री ने अपनी किताब ‘दान’ में किया है|इस किताब में दादाजी हमें यह भी बताते है कि किसे दान दे,क्या दान करना चाहिए, दान कितने प्रकार के होते है,दान करने के क्या फायदे है इत्यादि| दान करने से हम सिर्फ सामने वाले की मदद नहीं कर रहे पर खुद भी बहुत सारी खुशियाँ पाते है|दान का महत्व हमारे जीवन में क्या है, यह अधिक जानने के लिए, यह किताब ज़रूर पढ़े|By Dada Bhagwan. 2016
हमें क्रोध क्यों आता है? क्रोध आने के कुछ कारण यह है - जब कोई भी कार्य हमारी इच्छानुसार नहीं…
होता या हमें यह लगे कि सामनेवाला व्यक्ति हमारी बात नहीं समझ रहा या फिर किसी बात पर किसी के साथ मनमुटाव हो तब| लेकिन क्रोध आने का कोई भी निश्चित कारण नहीं होता| कई बार हमारी समझ से हमें यह लगता है कि, हम जो भी सोच रहे है या जो कुछ भी कर रहे है वह सब सही ही है| पर, उस वक्त यदि कोई दूसरा व्यक्ति आकार हमें गलत साबित करे तो हम अपना आपा खो बैठते है और उसपर अत्यंत क्रोधित हो जाते है| क्रोध करने से ना सिर्फ सामनेवाला व्यक्ति दुखी होता है पर हमें भी उतना ही दुःख होता है| कई किस्सों में यह देखा गया है कि जिससे हम सबसे अधिक प्यार करते है, उसपर ही सबसे ज्यादा गुस्सा भी करते हैं| इस तरह बिना सोचा समझे गुस्सा करने से कई बार हमारे संबंधो में भी काफी तनाव पैदा हो जाता है जिसका फल अच्छा नहीं होता| किस प्रकार हम अपने क्रोध पर काबू पा सकते है या किसी और क्रोधित व्यक्ति के साथ कैसा बर्ताव करे ताकि हमारे औरों से प्रेमपूर्वक सम्बन्ध बने रहे, इन प्रश्नों का हल पाने के लिए आगे पढ़े|मध्यकालीन भारत राजनीति, समाज और संस्कृति यह पुस्तक इतिहास के काल का वर्णन प्रस्तुत करती है, प्रस्तुत पुस्तक में विस्तार…
से इन अंतरों का पता लगाने की कोशिश किए बगैर आठवीं सदी से सत्रहवीं सदी की समाप्ति तक भारत के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के अभ्युदय के अध्ययन का प्रयास किया गया है । इन सभी पहलुओं को एक खंड में समायोजित करना कठिन काम था । इस कार्य के पीछे ध्येय यह रहा है कि पिछले चार दशकों में इतिहासकारों द्वारा मध्यकालीन भारतीय इतिहास को एक नई दिशा देने के प्रयासों को एक जगह लाने से इसके प्रति आम लोगों की दिलचस्पी बढ़ेगी । साथ ही, मध्यकालीन भारत में राज्य की प्रकृति, लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता और उस अवधि में आर्थिक विकास की प्रवृत्ति को लेकर हाल में उठे विवादों को सही परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकेगा । इस पुस्तक में यह दर्शाया गया है कि बड़े साम्राज्यों के अभ्युदय और फिर छोटे खंडों में विभाजन और एकीकरण का मतलब हमेशा आर्थिक निष्क्रियता और सांस्कृतिक ह्रास ही नहीं रहा है, भारतीय इतिहास के मध्यकाल की तुलना अकसर तुर्क और मुगल शासनकाल से की जाती है जिसका अर्थ है सामाजिक कारकों की जगह राजनीतिक कारकों को प्राथमिकता देना । यह अवधारणा इस मान्यता पर भी आधारित है कि पिछली कई सदियों के दौरान भारतीय समाज में बहुत थोड़ा बदलाव आया है । इतिहासकारों ने भारत में जनजातीय समाज के क्षेत्रीय राज्यों में तब्दील होने का मूल्यांकन किया है ।By Brahma Kumari Pari. 2020
इस पुस्तक मे जो कुछ भी समझाया गया है उसकी गहराई को समझने के मकसद से इसे पढ़िये। इसे सिर्फ…
एक 'पाठन सामग्री' मत समझिए। इसे सिर्फ होलोग्राफिक यूनिवर्स के बारे में जानने के लिए मत पढ़िए बल्कि, लेखिका इसके बारे में क्या समझाना चाहती है जब तक आप उसको अनुभव नही करते और समझ नही लेते तब तक उस पर चिंतन करते रहिए। इस पुस्तक मे जो भी लिखा गया है उसकी कल्पना करते समय एक खुला और साफ मस्तिष्क रखने से आपको यह अनुभव करने में मदद मिलेगी कि लेखिका ने क्या अनुभव किया है और आपने उससे अलग क्या अनुभव किया है। परिणाम स्वरूप, आप ये समझ पाएंगे की लेखिका क्या समझाना चाहती है। जब तक आप इस पुस्तक को समझ नही लेते तब तक अगर आप इसे बार बार पढ़ेंगे, तो आपकी होलोग्राफिक यूनिवर्स को अनुभव करने की क्षमता बढ़ती जाएगी। पढ़ने के अनुभव का आनंद लीजिए !