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By Rameshchandra Shah. 1979
हिन्दी के मूर्धन्य उपन्यासकार जैनेन्द्र कुमार ने जयशंकर प्रसाद की प्रशंसा हमारे साहित्य के पहले महान् स्वतंत्रचेता के रूप में…
की है। प्रसाद का दर्शन भारतीय इतिहास-प्रवाह में अर्जित, गँवाई गई तथा फिर से प्राप्त नैतिक तथा सौन्दर्यात्मक, व्यावहारिक तथा रहस्यात्मक, अंतर्दृष्टियों का समन्वयन करने का साहसिक प्रयास है। उनकी कविकल्पना सदैव उनके निजी जीवन-अनुभवों तथा अन्वीक्षणों से संयमित तथा संचरित रही। उनका कथा साहित्य तथा नाट्य साहित्य अपने सारे रूमानी तथा रहस्यात्मक वातावरण के बावजूद गहरे मनोवैज्ञानिक यथार्थवाद की नींव पर खड़ा है। कवि-नाटककार उपन्यासकार तथा कहानी लेखक जयंशंकर प्रसाद पर लिखे गए प्रस्तुत विनिबंध में हिन्दी के विख्यात आलोचक, चिन्तक तथा उपन्यासकार रमेशचन्द्र शाह ने प्रसाद को उनके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में रखा है, जीवन वृत्तांत प्रस्तुत किया है तथा पाठक को उनके पूरे कृतित्व के गहनतर मूल्यांकन की ओर प्रेरित किया है।By Publications Division. 2022
By Reserve Bank of India. 2021
पिछले कुछ वर्षों में, पैसे के आदान-प्रदान के लिए डिजिटल मीडिया का उपयोग बढ़ा है। इससे न केवल उपभोक्ता सुविधा…
में वृद्धि हुई है, बल्कि वित्तीय समावेशन के राष्ट्रीय लक्ष्य को प्राप्त करने में भी योगदान मिला है। लेकिन वित्तीय लेनदेन के आगमन के साथ, धोखाधड़ी की घटनाएं बढ़ रही हैं। आम, भोले-भाले नागरिकों की मेहनत की कमाई को चुराने के लिए आर्थिक अपराधी नए-नए तरीके अपना रहे हैं. ये अपराधी मुख्य रूप से ऐसे व्यक्तियों को लक्षित करते हैं जो प्रौद्योगिकी-उन्मुख वित्तीय लेनदेन की दुनिया में नए हैं। पुस्तिका को ऐसे वित्तीय लेनदेन के लिए डिजिटल मीडिया का उपयोग करने वाले नए ग्राहकों का मार्गदर्शन करने और अधिक व्यावहारिक तरीके से मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।By Shrigopal Singh Sisodia 'Nisar'. 2020
By Ignou. 2004
By Jaishankar Prasad. 1980
“लहर” जयशंकर प्रसाद के प्रौढ़ रचनाकाल की सृष्टि है। इस संग्रह में कवि की सर्वोत्तम कविताएँ संकलित हैं। यह प्रसाद…
जी का ऐसा एकमात्र कविता-संग्रह है जिसकी किसी कविता में प्रथम, द्वितीय या तृतीय किसी संस्करण में कोई परिवर्तन नहीं किया गया। प्रौढ़ता का विश्वास इसके प्रकाशकीय ('सूचना)' में भी झलकता है। 'सूचना' में लिखा गया था कि साहित्य क्षेत्र में यह संग्रह यदि अपना विशेष गौरव स्थापित करे तो हमें आश्चर्य न होगा, क्योंकि अनेक दृष्टियों से यह संग्रह कविता मर्मज्ञों को अपनी ओर आग्रहपूर्वक देखने के लिए बाध्य करेगा।By Dr Puranchand Tandan. 2001
“वरदायिनी चण्डी-चरित्र” (गुरु गोविन्द सिंह विरचित) वास्वत में भक्ति-भावों को सशक्त एवं प्रखर बनाने की विलक्षण प्रेरणा है। भक्ति की…
अन्य रचनाएँ जिनमें विनय, प्रेम, वात्सल्य अथवा दास्य आदि भाव प्रबल रहते हैं, उनसे यह रचना नितान्त भिन्न है। इस रचना से पाठकों-भक्तों के भीतर उत्साह, उमंग एवं पराक्रम की भावना का संचार भी होता है। शक्ति-स्तुति की भावना से जुड़कर हम अपने भीतर के कालुष्य का निवारण करते हैं। मन की परतें उज्ज्वल हो जाती हैं। वीरता और भक्ति भावना का यह अद्भुत संगम ही इस रचना की विशिष्टिता है। शक्ति की उपासना, वास्तव में विश्वास की, शिवत्व की तथा सत्य-भावना की उपासना है। अपने भीतर की शक्ति को हम सब जगाएँ, आज यह आवश्यक भी है। न्याय और धर्म की प्रतिष्ठा के लिए, सहनशीलता, क्षमा और दया की निरंतर पूजा के लिए यह आवश्यक है कि हम 'शक्तिमान' बनें। गुरु गोविन्द सिंह का यही स्वप्न है जो ‘चण्डी-चरित्र' के माध्यम से वे देखते हैं। निष्क्रीय समाज को सक्रिय बनाने एवं अकर्मण्य को कर्म का सूत्र प्रदान करने की यह नित्य-कोशिश है।By Dr Ramavtar Sharma. 2012
प्रस्तुत “अंतरंग” कविता संग्रह दाम्पत्य प्रेम पर आधारित है। संग्रह के खण्ड तीन की कवितायें सर्वनिवेदित है। ‘कुछ भी गलत…
नहीं है’ कविता में कवि का सामाजिक दृष्टिकोण स्पष्ट हुआ है। यह संग्रह पुरुष निष्ठा का द्योतक है। अपनी प्रिया, अपनी पत्नी पर कविताएं लिखना कोई नया प्रचलन नहीं किंतु, दाम्पत्य संबंध की जीवंतता एवं गरिमा को आज के दौर में बनाये रखने में ये कवितायें एक सीख देती हैं। कविताओं की भाषा सहज है, शिल्प सरल है। लिविंग रिलेशनशीप के आज के दौर में संबंधों की संस्कृति के प्राणतत्व को ये कवितायें स्थापित करती हैं।By Gabriel Agbo, Meenakshi Dogra. 2017
समलैंगिकता अच्छाइ या बुराइ ? इस यौन वरीयता का स्त्रोत और समाज पर इसके प्रभाव क्या है? क्या यह भगवान…
की मूल योजना में था? या यह प्राकृतिक है ? कौन वास्तव में इसके पीछे है और किस उद्देश्य के लिए है? क्या समलैंगिकों प्रलोभित कर अनदेखी ताकतें फसा रही हैं? और आने वाली पीढ़ियों पर इसका क्या असर होगा? इस मुद्दे पर ईसाई धर्म, इस्लाम, पारंपरिक धर्म आदि के विचार क्या हैं? गुदा और मौखिक सेक्स कितना खतरनाक है - क्या कोई स्वास्थ्य जोखिम? वे गुदा और मौखिक कैंसर या अन्य किसी संक्रमण का कारण बन सकते हैं? समलैंगिकता एक काले जादू का अभ्यास है? ये सभी प्रश्न और अधिक का जवाब देने की कोशिश हम इस पुस्तक में करेंगे ।By Rashtriy Shaikshik Anusandhan Aur Prashikshan Parishad. 2019
समाजशास्त्र परिचय 11वीं कक्षा का राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् ने पुस्तक हिंदी भाषा में प्रकाशित किया गया है।…
यह पाठ्यपुस्तक समाजशास्त्र के परिचय हेतु एक आमंत्रण है। यह समाजशास्त्र विषय का विस्तृत एवं बोझिल वर्णन नहीं है, अपितु यह हमें इसका बोध कराती है और साथ ही समाज को समझने एवं अपनी जिंदगी को बेहतर समझने में समाजशास्त्र किस तरह हमारी मदद करता है, उसका ज्ञान प्रदान करती है। यह पाठ्यपुस्तक विद्यार्थियों को समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण, उसकी संकल्पनाओं एवं अनुसंधान के साधनों से परिचित कराती है। यह पाठ्यपुस्तक दर्शाती है कि किस तरह समाजशास्त्र एक विषय की तरह इस तथ्य से संबंधित है कि हममें से प्रत्येक, समाज के सदस्य की तरह, समाज के बारे में सामान्य बौद्धिक विचार और समझ रखता है। समाजशास्त्र ज्ञान के एक निकाय के रुप में सामान्य बौद्धिक ज्ञान के निकाय से कैसे अलग है जोकि समाज में अवश्य पाया जाता है? क्या यह अपनी पद्धति और उपागम के कारण अलग है या यह इसलिए अलग है क्योंकि यह लगातार आलोचनात्मक प्रश्न पूछता है, क्योंकि यह किसी भी विचार को बिना विमर्श के स्वीकार नहीं करता? हम इस तरह के कई और प्रश्न जोड़ सकते हैं। समाजशास्त्र एक ऐसा विषय है जोकि हमें समाज, जिस तरह से कार्य करता है, वह क्यों और कैसे करता है, इसकी समझ देता है और इसके बारे में प्रश्न पूछने के लिए प्रशिक्षण देता है। इसीलिए समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्द एवं संकल्पनाएँ ज़रूरी हैं क्योंकि वही समाजशास्त्रीय समझ के हमारे साधन हैं।By Indradev Narayan. 1994
गोस्वामी श्री तुलसीदासजी द्वारा विरचित तथा श्री इन्द्रदेव नारायण जी द्वारा अनुवादित यह पुस्तक भावुक भक्तों को प्राणों के समान…
प्रिय है। इसमें भगवान श्रीराम के बालकाण्डसे लेकर उत्तरकाण्ड पर्यन्त लीलाओं का बड़ा ही मनोहारी चित्रण है।By Jaishankar Prasad. 1933
आँसू जयशंकर प्रसाद की एक विशिष्ट रचना है। इसका प्रथम संस्करण में साहित्य-सदन, चिरगाँव, झाँसी से प्रकाशित हुआ था। द्वितीय…
संस्करण 1933 ई. में भारती भण्डार, प्रयाग से प्रकाशित हुआ। रचनाकाल 'आँसू' का रचनाकाल लगभग 1923 - 24 ई. है। कहा जाता है पहले कवि का विचार इसे 'कामायनी' के अंतर्गत ही प्रस्तुत करने का था, किंतु अधिक गीतिमयता के कारण तथा प्रबन्ध काव्य के अधिक अनुरूप न होने के कारण उसने यह विचार त्याग दिया। संस्करणों में अंतर 'आँसू' के दोनों संस्करणों में पर्याप्त अंतर है। प्रथम संस्करण में केवल 126 छन्द थे। उसका स्वर अतिशय निराशापूर्ण था। उसे एक दु:खान्त रचना कहा जायगा। नवीन संस्करण में कवि ने कई संशोधन किये। छन्दों की संख्या 190 हो गयी और उसमें एक आशा-विश्वास का स्वर प्रतिपादित किया गया। कतिपय छन्दों की रूप रेखा में भी कवि ने परिवर्तन किया और छन्दों को इस क्रम से रखा गया कि उससे एक कथा का आभास मिल सके। कथा तत्व 'आँसू' एक श्रेष्ठ गीतसृष्टि है, जिसमें प्रसाद की व्यक्तिगत जीवनानुभूति का प्रकाशन हुआ है। अनेक प्रयत्नों के बावजूद इस काव्य की प्रेरणा के विषय में निश्चित रूप से कहना कठिन है, किंतु इतना निर्विवाद है कि इसके मूल में कोई प्रेम-कथा अवश्य है। 'आँसू' में प्रत्यक्ष रीति से कवि ने अपने प्रिय के समक्ष निवेदन किया है। कवि के व्यक्तित्व का जितना मार्मिक प्रकाशन इस काव्य में हुआ है उतना अन्यन्न नहीं दिखाई देता। अनेक स्थलों पर वेदना में डूबा हुआ कवि अपनी अनुभूति को उसके चरम ताप में अंकित करता है। काव्य के अंत में वेदना को एक चिंतन की भूमिका प्रदान की गयी है। इसे वियोग और पीड़ा का प्रसार कह सकते हैं। कवि के व्यक्तित्व की असाधारण विजय और क्षमता इसी अवसर पर प्रकट होती है।By Shivdan Singh Chauhan, Mrs Vijay Chauhan. 1969
प्रस्तुत पुस्तक "व्यक्तित्व का विघटन" मैक्सिम गोर्की द्वारा लिखा हुआ साहत्यिक निबन्ध शिवदानसिंह चौहान और श्रीमती विजय चौहानजीने हिंदी में…
अनुवाद किया है। गोर्की के जिन पाँच महत्वपूर्ण साहित्य-सम्बन्धी निबन्धों का अनुवाद हम यहाँ हिन्दी पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं, उनके बारे में कुछ भी कहकर हम व्यर्थ ही गोर्की की बात को संक्षिप्त रूप में दोहराना आवश्यक नहीं समझते। निबन्ध भारत में ही नहीं, बल्कि सारे संसार के साहित्यों में भी प्रगतिशील आन्दोलन के लिए पिछले तीस-पैंतीस साल से प्रेरणा और मार्ग-दर्शन का काम करते आये हैं। आजकल जब शीत-युद्ध के परिणामस्वरूप सभी साहित्यिक मूल्यों का जैसे अवमूल्यन हो गया दीखता है, और कुछ उत्साही प्रगतिशील आलोचक भी इस रौ में बहकर और साहित्य में 'अहम्-केन्द्रित व्यक्तिवाद' का दर्शन अपनाकर मात्र रूसवादी प्रतिमानों को आज के 'सन्दर्भो' का तकाजा बताते हुए उन्हें 'नये प्रतिमानों के नाम से प्रतिष्ठित करने की कोशिश कर रहे हैं, हमारे पाठकों के लिए गोर्की के इन निबन्धों की रेलिवेन्स और भी अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि सोवियत क्रान्ति और प्रथम महायुद्ध के पहले के रूस में भी ऐसे ही मात्र रूपवादी प्रतिमानों को 'उस युग के सन्दर्भो' का तकाज़ा बताया गया था। गोर्की ने अपने निबन्धों में उन सन्दर्भो और मनःस्थितियों का जो गहरा विश्लेषण किया है, वह हमारे लिए विशेष रूप से उपयोगी है।By Acharya Nand Dulare Vajpeyee. 1976
किसी भी जीवित और जागृत साहित्य की रचना और विवरण, उसके निर्माण और चिन्तन, अटूट हुआ करते हैं; वे एक-दूसरे…
से नितान्त दूर रखकर नहीं देखे जा सकते । वे प्रकृति से ही सहजता और समीपी होते हैं, दोनों ही दोनों को प्रेरित और प्रभावित करते हैं। कदाचित इसीलिए वे हिन्दी साहित्य का आधुनिक युग पुस्तक में अनायास एक साथ स्थान पा गये हैं।By Kashinath Trivedi. 1951
बापूकी 'आत्मकथा' एक बड़ा ग्रंथ है। इस पुस्तकमें उसका सार तैयार किया गया है। ऐसा करते समय बापूके लेखन-क्रम, भाषा…
इत्यादिको प्रायः मूलके जैसा ही रखा गया है। केवल विषयको संक्षिप्त करने और सिलसिला जोड़नेके लिए कहीं-कहीं नयी भाषाका प्रयोग किया गया है। अतः सहज रूपसे यह कहा जा सकता है कि इस संक्षिप्त आत्मकथा' का ९९.९९ से भी अधिक भाग मूलका अवतरण ही है। इस 'संक्षिप्त आत्मकथा' को नये ढंगसे विभक्त किया गया है और कुछ अध्यायोंको उन विषयों के अनुरूप नये नाम दिये गये हैं। अध्यायों की गिनती प्रत्येक खण्डकी अलग-अलग न करके समूची पुस्तककी एक ही रखी गई है। बापूकी 'आत्मकथा' एक ऐसा ग्रंथ है, जो बापूको समझने में बहुत सहायक होता है। इसका संक्षिप्त संस्करण तैयार करनेका यह प्रयास इस अभिलाषासे किया गया है कि यह विशिष्ट व्यक्तियोंको और खासकर नयी पीढ़ीको बापूका अभ्यास करनेके लिए प्रेरित करे।By Navneet. 2020
जिंदगी में कभी-कभी ऐसा दौर आता है जब तकलीफ गुनगुनाहट के रास्ते बाहर आना चाहती है ! उसमे फंसकर गेम-जाना…
और गेम-दौरां तक एक हो जाते हैं ! ये गजलें दरअसल ऐसे ही एक दौर की देन हैं ! यहाँ मैं साफ़ कर दूँ कि गजल मुझ पर नाजिल नहीं हुई ! मैं पिछले पच्चीस वर्षों से इसे सुनता और पसंद करता आया हूँ और मैंने कभी चोरी-छिपे इसमें हाथ भी आजमाया है ! लेकिन गजल लिखने या कहने के पीछे एक जिज्ञासा अक्सर मुझे तंग करती रही है और वह है कि भारतीय कवियों में सबसे प्रखर अनुभूति के कवि मिर्जा ग़ालिब ने अपनी पीड़ा की अभिव्यक्ति के लिए गजल का माध्यम ही क्यों चुना ? और अगर गजल के माध्यम से ग़ालिब अपनी निजी तकलीफ को इतना सार्वजानिक बना सकते हैं तो मेरी दुहरी तकलीफ (जो व्यक्तिगत भी है और सामाजिक भी) इस माध्यम के सहारे एक अपेक्षाकृत व्यापक पाठक वर्ग तक क्यों नहीं पहुँच सकती ? मुझे अपने बारे में कभी मुगालते नहीं रहे ! मैं मानता हूँ, मैं ग़ालिब नहीं हूँ ! उस प्रतिभा का शतांश भी शायद मुझमें नहीं है ! लेकिन मैं यह नहीं मानता कि मेरी तकलीफ ग़ालिब से कम हैं या मैंने उसे कम शिद्दत से महसूस किया है ! हो सकता है, अपनी-अपनी पीड़ा को लेकर हर आदमी को यह वहम होता हो..लेकिन इतिहास मुझसे जुडी हुई मेरे समय की तकलीफ का गवाह खुद है ! बस..अनुभूति की इसी जरा-सी पूँजी के सहारे मैं उस्तादों और महारथियों के अखाड़े में उतर पड़ा !By Namwar Singh. 2009
By Dr Ram Avtar Sharma. 1993
“कहानीकार प्रसाद” एक साथ ही मौलिक आलोचना ग्रंथ भी है, मानक शोधग्रंथ भी। इस ग्रंथ में प्रसाद की सारी 60…
कहानियों का सर्वांगीण अनुशीलन किया गया है। संख्या में अधिक न होने पर भी प्रसाद की कहानियों के आयाम अत्यंत स्फीत हैं: प्रागैतिहातिक कहानी, ऐतिहासिक कहानी, सामाजिक कहानी, मनोवैज्ञानिक कहानी प्रभृति की दृष्टियों से प्रसाद एक महान् कहानीकार सिद्ध होते हैं। उन्होंने विविध युगों एवं विविध वर्गों की मानवता का बहुत ही विदग्धतापूर्ण चित्रण किया है। हर्ष का विषय है कि इस ग्रन्थ में समग्र उपलब्ध सामग्री के प्रयोग के साथ मौलिकता एवं स्थापना-शक्ति के प्रभावी एवं उपयोगी दर्शन हो जाते हैं। निस्संदेह, यह अपने विषय का श्रेष्ठतम ग्रंथ है।